हजारों दिये चाहे जलाओ घर में
झुलाओ झालरों को पूरे शहर में
तम चमक से तिमिर जाने का नहीं
जो राम ना बसा हो अगर उर में।
उड़ाओ रॉकेटों को फोड़ों पटाके
चलाओ अनारों को करो धमाके
खुशी नाद बनके गुंजेगी तभी
जब चले़ कर्म मर्यादा के रास्ते।
रहे भान इतना दिवाली अहम ना बने
बारुद और कचरे से माँ धरा ना पटे
जले प्रेम दीप घर और चौक चोबारा
राम लौ से कोई कौना अछूता ना रहे।
बटुवे में रोशनी नहीं समाती
बल-दल शक्ति खुशी नहीं लाती
राम सोच विचार का नाम दिवाली
ये मनुज मन को उज्जास कराती ।
जलेगा प्रीत दीप तो अंधिया ढहेगा
निर्मल गंगा के जैसे निर्वाध बहेगा
तन मन पाप मैल से मुक्त होके रहेगा
पर्व पावक था, है, पावक ही रहेगा।
दीप छोटा सा है सूर्य अवतार है
धूप ना दे सके फिर भी पहरेदार है
भले एक फूंक का है वो निवाला
लगे देह पर तो फिर वो अंगार है।
भले सुदामा से पिंड छुड़ा लिया हो
दुधिया बल्बों से घर जगमगाया हो
दुबका तिमिर कौने का भागेगा नहीं
रामचरित्र दीप जब ना टिमटिमाया हो।
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
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