शूरत्व नहीं आहत है
ना शौर्य अशक्त हुआना भुजबल क्षीण हुआ
ना पराक्रम निहत हुआ
हम आर्यावर्त भरत वंशी
जबड़ा फाड़के देखते हैं
छुपा हो कहीं भी अहि
बिल में घुसके भेदते हैं
केशर की पीत क्यारी
लाल जो तुमने बनायी
शर्मिंदा है कश्यप धरा
जन्नत आंशू बहा रही
धर्म पूछ निहत्थों पर
बर्बरता मचाने वालो
सुहास सुहागिनों का
सर, सिंदूर मिटाने वालो
समसाबाड़ी पीर पंजाल
अब तुम्हें नहीं छुपाने वाला
दिया जिसने राशन रसद
वो अब नहीं बचाने वाला
माँ भारती के वीर सिपाही
क़ब्र तुम्हारी खोद रहे
देव चिनार धरती को
छद्दम विहीन कर रहे।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
dhanyawad Digvijay ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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