धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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रविवार, 5 अगस्त 2012
वटवृक्ष: स्त्री- देह का सच
वटवृक्ष: स्त्री- देह का सच प्रज्ञा पांडेय जी इस कटु सत्य के लिए इससे ज्यादा सब्द नहीं हो सकते आभार स्वीकार करना इस सुन्दर लेखन के लिये
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