धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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मंगलवार, 25 सितंबर 2012
वटवृक्ष: तेरा जीना बेकार !!
वटवृक्ष: तेरा जीना बेकार !!: यौवन तुझे आज फिर ललकार !! तेरा जीना बेकार !! फैला है अनियमिता का अन्धकार लूट खसोट का व्यापार खुली आँखो के धृतराष्टों के ...
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