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सोमवार, 21 जनवरी 2013

लडकी : भ्रुण की पुकार

अरी ओ !! माँ,
मैं तेरी आवाज सुन रही
तु क्यों मुझे मिटाने का बिचार कर रही।

अपने गर्व में उगे अंकुर को
क्यों रौंधना चाहती हो?
क्यों अपने दामन में हत्यारिन का दाग लगाना चाहती हो?

तु ही बता लडकी भ्रुण होने में मेरा क्या दोष है
तु भी तो नारी है,
फिर क्यों? मुझ पर क्यों रोष है

जरा सोच!
तेरी माँ भी तुझे गर्व में मार देती
आज तु कहाँ? जननी बन लडके की चाह रख पाती।

मेरे इस प्रश्न का उत्तर क्या? तेरे पास है
बिना नारी के क्या? धरती पर जीवन की आश है।

तु क्यों इस सत्य को मिटाना चाहती हो?
प्रकृतित्व पर वार करना चाहती हो।

मैं भी जग में आना चाहती हूँ।
रूपहले संसार को देखना चाहती हूँ।
बेटी, बहन, बहु और माता का फर्ज निभाना चाहती हूँ।

सुन !!! मुझ लडकी भ्रुण की पुकार
मैं, दुनियां का भ्रम तोडना चाहती हूँ
नारी बन कर जीवन की हर ऊँचाई छूना चाहती हूँ ।

नवम्बर 2012

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