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गुरुवार, 23 मई 2013

पथ वो पुराना (2)



पथ वो पुराना

गुजरा था जिसमें याराना

सुहाना सफर और महकती हवा का

था वो घराना

पथ वो पुराना



अठेलियां लेता था

किशोर चमन

अंकुरित हुए थेप् यार के बीज

आज फिर याद आया वो जमाना

पथ वो पुराना



ना वर्तमान की फिक्र थी

ना होती भविष्या की चिन्ता

जुडे दो दिलों के स्पंदनो की

सिसकती सिकायत से

होता था फसाना

पथ वो पुराना



नहीं पता था

बिसराया वो कल इतना दर्द देगा

लेटे मुर्दा प्यार की बुझती चिता की आग

फिर जल कर क्रन्दन करायेगा

जीवन अवशेष की शांस लेगा

कभी नहीं लुटाता इन राहोंपर

अपना जिगराना

पथ वो पुराना



बलबीर राणा ‘भैजी‘ ©सर्वाध सुरक्षित


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