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शुक्रवार, 31 मई 2013

बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा



अरे परदेशी उत्तराखंडी भुला
पिछने मुड़ी मेरी बात सुणी ल्यावा,
कभी-कभार बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा
मेरु गढ़वाल घूमी आवा।
प्योंली जन कोंल मंखियों कु दिल दगडी
बुरांश का रंग मा फागुणे होली खेली जावा

चैता न बशंती तें धे लगेली,
डांडा-काठियों बटी, हर्याली ऐगे,  
दिशाध्याणीयों की, आशा कु मौल्यार
मैते की माया मा लगिगे,
तुम भी एक बुज्याडी कल्यो दे जावा,
दगडा-दगडी, चान्चडी-झुमेलु, खेली आवा
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा।

सारियों मा ग्युं की बालडी पकण लेगे,
काफल की डाली झुकण बैठिगे,  
बैसाख-जेठ का घाम मा,
तुम भी, बांजा का छैल मा हिंसर-किन्गोड, खे जावा
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा।

आशाड रगड़-बगड़ मा चलिन, 
स्कुलियों की मांग ना, ब्वे-बुबा की नींद हरचिन,  
सोण-भादों की रिम-झिम बरखा मा,
तुम भी भीजी जावा,
छवाया मंगरों कु पाणी पी जावा,
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा।
डोखरा पुंगडी मा लो मानण लगीनी,
बाड़ी-सगोडी कखडी-मुंगरी ल भरीनी,
असूज श्राध ऋतू मा पितरों का खातिर,  
तुम भी अपणी श्रधा तर्पण कैर ल्यावा,
कुछ पुण्य कमे जावा,   
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा।

दशेरा-बग्वाल कु मैना लगीगे,  
गौं-ख्वालों मा रामलीला कु सबत बजिगे,
ठंडी बथों की ससराट मा, भेलो खेली जावा,
पूरणों की जगयीं संस्कृति की जोत,
बुजण न द्यावा, बुजण न द्यावा,
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा।


ढोल दमों का भिभडाट का बीच,
मसुक बाजे की तान सुणण लगिगे,
ब्योली-ब्योला कु ज्वान ज्यू धड़कण बैठिगे,
मंगशीर मा बरातियों का न्युतेर बणी आवा,
दीदा-भूलों का ब्यो मा स्याली की गाली खै जावा,
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा।


डांडी-कांठी, ह्युं ला ढकी न,
पूस-मौ मा उबरा-उबरी छुंवी लगेनी,
भट-बुखणा की कटड-कटद दगडी,  
द्यब्तों का मंडाण मा जागरियों की गाथा सुणी आवा,
अपणा विकाश का दगडी,
ये पलायन का ओडाल रुवेकी जावा,
बलबीर भैजी का अडिग शब्द सुणी ल्यावा,
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा,
मेरु गढ़वाल घूमी आवा।


१३ अप्रेल २०१३
गीतकार : बलबीर रणा “भैजी”
© सर्वाध सुरक्षित 

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