धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
Pages
▼
गुरुवार, 18 दिसंबर 2014
हैवानी फितरत
कब चेतेगा तु इन्शान
खुद के लिए फरिस्ता
दूजे के लिए हैवान
कराहता रहेगा जीवन
जब तक सुनाएगा
लहू सैलाबी फरमान।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें