धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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सोमवार, 19 दिसंबर 2016
****जय जवान****
मुद्तों से बनाता रहता वह उस आड़ को कि उसके पीछे से बचा सके अस्मिता माँ भारती की।
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