धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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बुधवार, 16 अगस्त 2017
उम्र के दिये
तेल बाती का किरदार निभाते-निभाते इस आश में उम्र गुजर जाती है कि एक लौ बन सकें और वह लौ रोशन कर सके उस आशियाने को जिसमें गृहस्त रहता है।
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