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बुधवार, 8 नवंबर 2017

स्मरण उस सादगी का


       रंगकर्मी, साहित्यकार, कार्टूनिस एवम कविता पोस्टर विधा के महान चित्रकार,  श्रद्धेय श्री बी मोहन नेगी जी बसर्ते आज बैकुंठवासी हो गए लेकिन आपके कर्म आपको इस धरती पर जन्मान्तर को अमर कर गए। श्रद्धा से  शीष झुकता है उस तपस्वी के लिए जिसने सम्पूर्ण जीवन अपनी चित्र साधना के माध्यम से लोक समझ के व्यक्तियों को नयीं ऊर्जा से लबरेज रखा, आध्यात्मिक शुचिता और व्यसनों से मुक्त, भारतीय ऋषि परम्परा का निर्वहन करते हुए एक अनोखा संयमित जीवन जीने वाला चित्रकार जो कभी भी चर्चा में रहने को लालायित न रहा और न रहना चाहा। उनकी कला साधना जीवन की उस  गहराई को नापती हुयी जड़ तक जाती जहाँ से वास्तविक जीवन को पोषण मिलता है। न्यौछावर क्या होता है, न्यौछावर की असली परिभाषा जाननी हो तो श्रधेय बी मोहन नेगी जी कला साधना की धरोहर सहज चंद मिनट में समझा देती है।  बिना राजनैतिक पक्षधरता के, चाटुकारिता से दूर अपनी कुटिया में जीवन सार संचित करता एक महान कलाकार बिना स्वस्वार्थ के कर्म पथ पर जीवन पर्यन्त अडिग खड़ा रहा। लाभ-हानि से बिरक्त सत्ता के गलियारों में अपनी पहचान अंकित करने या सत्ताधीशों को रिझाने की छटपटाहट सोयी रही जगी रही तो वो चेतना जो मात्र कर्म जानती है फल नहीं। छोटे पहाड़ी कस्बों में कला साधना में डूबा कलावंत आज सेकड़ों कविता पोस्टर, रेखाचित्र, कोलाज, मिनिएचर्स, कार्टून आदि धरोहर धरती पर आने वाली पीढ़ी के लिये सहेज गए हैं। श्रधेय नेगी जी की सृजनता ने उत्तराखंड के साथ दुनीयां के कवियों की कविताओं को चित्र कलेवर में अमरत्व दिया है, श्रधेय नेगी जी सदैव अपनी चित्रकला और बोधपरक कबिताओं से सोई व्यवस्था और समाज जागृत करते रहे। निरन्तर सक्रीय और लगातार, लगातार दिन रात लगन में मगन भगवान् ने कौन सी देह बनायी थी कि बिराम उनसे हमेशा डरता रहा। श्रधेय बी मोहन नेगी जी को लगभग युवावस्था में आने के बाद ही जाना, 2013 से सोशियल मीडिया के माध्यम से भैजी से इनडारेक्ट संवाद बना रहा लेकिन व्यग्तिगत फोन पर 2014 से। सैन्य जीवन के अभिर्भाव से उनके साक्षात सम दर्शन नहीं कर पाया और हर छुट्टी में लालसा रहती थी कि अबकी बार जरूर पौड़ी जाऊंगा पर संभव नहीं हो सका किसी को कहां आभास होता कि चलता फिरता आदमी सडन अलविदा कह देंगा। श्रधेय नेगी जी की चित्रकला का अवलोकन साहित्य क्षेत्र में आने के बाद ज्यादा रहा उनके हर चित्र और पोस्टरों में जीवंत जीवन आयाम होता है इसे कला पारखी अच्छी तरह समझते हैं, एक दिन भी साधना को बिराम देना उन्हें सायद अखरता होगा इस लिए एक नार्मल निमोनियाँ उन्हें न लीलता। इतने लम्बे समय तक बिना किसी रिटर्न या दाम के और अपने कला साहित्य योगदान के मुकाबले किसी बड़े सम्मान से ताज्य रहकर भी निरन्तर साधना रत रहना बिरले ही लोगों के बस का होता है। बिना फायदे के पूरा जीवन किसी काम में खपा देना गृहस्थ आदमी के बस का कम ही होता है लेकिन उन्होंने गृहस्थ की अच्छी पारी खेलने के साथ कला की पिच को बखूबी सम्भाला और अभी सिर्फ प्रथम पारी का खेल मानते थे कि मृत्यु लोक का दाना पानी खत्म हो गया।
            2014 की बात है मेरी और भुला महेंद्र राणा जी की साजी कबिता पोथी खुदेड डंडयाली जब श्रधेय बी मोहन नेगी जी के पास पहुंची तो भैजी का घर में फोन आया क्योंकि घर का ही स्थायी  संपर्क नम्बर हमने किताब में दिया था, हेलो!!!! कु घोर ह्वलु  बड़ा राणा या छवटा राणा कु? घोरवाली फोन रिसीब करि जी नमस्ते, जी मैंन पचछ्याणी नि कै बड़ा छवटे बात कना क्योंकि मैं अकेला भाई हूँ इस लिए श्रीमती को संसय हुआ। आप बलबीर राणा जिक का घोर बटिन ब्वना भुली?  मैं बी मोहन नेगी बुनु पोड़ी बटिन, राणा जीओं की किताब मिली मिते, सायद श्रीमती जी का परिचय न था भैजी से उसने जी भैजी में ही जवाब दिया, कख च राणा जी? वुं ड्यूटी पर छ, कख ह्वली ड्यूटी अज्कयाल? जी कश्मीर मा छ, अच्छा भुला तेँ मेरु आश्रीवाद और किताब की शुभकामनाएं दये दियां। दूसरे दिन जब श्रीमती जी ने बताया की कल पौड़ी से बी मोहन नेगी जी फोन आया था और बधाई दी, भली मिठ्ठी भौंण छी वों की। मन गद गद हो गया और दूर बॉर्डर पर एक सहज व्यक्तित्व की मूर्ति का चित्र अपने सामने महसूस करने लगा, यह मेरी कलम की चाटुकारिता नहीं बल्कि अपने संसारिक समझ के विपरीत एक अहसास था क्योंकि भैजी मेरी दृष्ठि में इससे पहले रसुखी व्यक्ति थे उनकी सहजता का अनुमान नहीं था इसलिए भी कि मैंने उन्हें किताब नहीं भेजी थी, जब भेजी ही नहीं तो फोन आने का सवाल ही नहीं लगता था, लेकिन बाद में पता चला कि महेंद्र भाई ने भैजी थी क्योंकि उनकी मुखा भेंट पहले भैजी से हुई थी। उसी दिन घर से भैजी का फोन नम्बर लिया और तुरन्त उन्हें कृतज्ञ मन से फोन किया, फोन पर उनकी मृदुलता ने उनकी आत्मीय सहजता की छवि को मेरे मानस पटल पर अंकित किया, तब से लगभग बराबर फेसबुक पर उनकी यात्रा किसी फोटो और पोस्टर पोस्ट विशेष पर फोन से भी बात करता रहता था, सितंबर 2017 में जब भैजी के बीमार होने की खबर मिली, फोन से हाल जाना तो  बोले भुला ठिक ही छों चिंता न करा, जरा यु खांसी नि जाणि, अब काफी सुधार च, खाणु बी खाणु छों, भुला आप बड्या लिखद कबिता जरा छवटी लिखण, क्या पता था भैजी की वह अंतिम सीख और आवज होगी और इतने जल्दी मुझे इस बॉर्डर पर मेरे आई कन की अनंत दिव्य यात्रा पर जाने की खबर मिलेगी। और मेरी आने वाली कबिता भैजी के कुची से वंचित हो जाएगी। नमन ऐ महान साधक, कोटिस श्रद्धा सुमन, भगवान आपको अपने चरणों में चिर शांति दे।

वे दिन


वही भूमी वही धरती
वही नक्श नजारे हैं
नहीं रहे तो,  वे दिन
बचपन में हमने गुजारे हैं।

गांव मोहल्ला चौक चौबारे
खेत खलियान हमारा है
न रहा वो अल्हड़पन
जिसने सबको लुभाया हैं।

चाचा ताया भाई बहन
रिश्ते वे अब भी सब सारे हैं
नहीं रहा वो अपनापन
हमारे बचपन ने निभाये हैं।

स्कूल कालेज पाठशाला
खेल मैदान सब न्यारे हैं
न रहे वे खुशनुमा पल
जो हमारे बचपन ने बिताए हैं।

कुछ परिवेश बदला, बदली प्रवृति
कुछ बदलते समय का इशारा है
कोई लौटा दे फिर उस भोलेपन को
जिसने सबको भरमाया हैं।

*@ बलबीर राणा 'अडिग'*

मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

उषा की पुरवायी



पूरब क्षितिज के ओट से
कमसिन किरण वो आती है
जगमग स्वर्ण आभा से
धरती की अलस भगाती है।

झूम उठते तरु-पादप
बहने लगती मंद पवन बयार
नन्ही चिडया की चह-चहाहट
गुड़िया को विस्तर से जगाती है
पूरब क्षितिज की ओट से ......

कमसिन पादपों का आगोस
भाग जाता निशा अहलाद
हरित तरुण तृणों के फलक पर
ओश की बूंद चमकाती है
पूरब क्षितिज की ओट से......

पुलक उठता धरा का पोर-पोर
नव उंमग नव शक्ति ऊर्जावान
खिलखिलाते बगिया के फूल
गीत दिवस का गाती है
पूरब क्षितिज की ओट से.....

अंगड़ाई मत ले लल्ला
उठ जग-जतन जोड़
उषा की यह पुरवायी
जीवन सीद्धि  देती है
पूरब क्षितिज की ओट से.....

@ बलबीर राणा 'अडिग'

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

स्वच्छ भारत और मैं


प्रस्तावना:-
    शरीर स्वस्थ बुद्धि चेतन के शूत्र को मनुष्य स्वयं के विकास के लिए वर्षों से अपनाता आया है लेकिन सवाल ये है कि शरीर कैसे और कब स्वस्थ रहेगा? शरीर के स्वस्थ रहने के लिए जरुरी है कि हमारे आसपास का वातावरण प्रदूषण रहित हो, पीने वाला पानी साफ़ हो और खाध्य सामाग्री साफ हो, तभी हमारी शाररिक क्रियाएँ सुचारू रूप से चलेंगी और बुद्धि और चेतना अच्छी रहेगी, बुद्धि और चेतना का स्वस्थ रहने का मतलब है जीवन के कार्यों का सही से सम्पादन और यही सम्पादन ही देश सेवा है, देश सेवा सीमा पर लड़ना ही नहीं होता अपितु अपने काम को निस्वार्थ भावना से क्रियान्वयन करना भी देश सेवा है तभी देश विकासोन्मुख रह सकता है।
    स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत सरकार द्वारा देश को स्वच्छता के प्रतीक के रुप में पेश करना है। स्वच्छ भारत का सपना महात्मा गाँधी के द्वारा देखा गया था जिसके संदर्भ में गाँधीजी ने कहा कि, ”स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरुरी है”, गाँधीजी ने निर्मलता और स्वच्छता दोनों को स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन के लिए  अनिवार्य बताया। लेकिन दुर्भाग्य से भारत आजादी के 70 साल बाद भी इन दोनों लक्ष्यों से काफी पीछे है। अगर आँकड़ो की बात करें तो केवल कुछ प्रतिशत लोगों के घरों में शौचालय है और आम आदमी का इस विषय पर नजरिया “मेरा तो क्या” वाला कायम है, इसीलिये भारत सरकार पूरी गंभीरता से बापू की इस सोच को हकीकत का रुप देने के लिये देश के सभी लोगों को इस मिशन से जोड़ने का प्रयास कर रही है ताकि आम भारतीय की सोच और स्वास्थ्य को स्वच्छ किया जा सके। भारत रत्न स्वतंत्रता सेनानी महान सामाजिक परिवर्तक और लेखक आचार्य विनोवा भावे ने सुचिता से आत्म दर्शन सिद्धांत को प्रतिपादित किया और इसकी शुरुवात उन्होंने इंदौर शहर से मल साफ़ करने से की थी।  
👍स्वच्छ भारत अभियान क्या है ?

    स्वच्छ भारत अभियान की शुरुवात हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 गाँधी जयंती के दिन नई दिल्ली के राजघाट से किया और इसे बापू की 150वीं जयंती (2 अक्दूबर 2019) तक पूरा करने का लक्ष्य रखा। इस अभियान को सफल बनाने के लिये सरकार ने सभी लोगों से निवेदन किया कि वो अपने आसपास और दूसरी जगहों पर साल में सिर्फ 100 घंटे सफाई के लिये दें। इसको लागू करने के लिये बहुत सारी नीतियाँ और प्रक्रिया है  जिसमें पूर्ण अमल होना अभी बाकी है, इनमें  तीन चरण  बनाये है, योजना, क्रियान्वयन, और निरंतरता। इस अभियान को राष्ट्रीय आंदोलन के रुप में भारत सरकार द्वारा देश के 4041 साविधिक नगर की आधारभूत संरचना, सड़के, और पैदल मार्ग, की साफ-सफाई का लक्ष्य कर आरंभ किया गया और भारत के शहरी विकास तथा पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत इस अभियान को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू किया गया है।

👍आखिर स्वच्छ भारत अभियान की आवश्यकता क्यों है?

    आदिकाल या पौराणिक काल में जीवन प्राकृतिक चीजों पर निर्भर था जो प्रकृतिजन्य होने के कारण सजीव जीवन के लिए घातक नहीं था लेकिन शनै-शनै मनुष्य की चेतना और बुद्धि विकास की परणीत विज्ञान का अविर्भाव  पृथ्वी पर हुआ जिसके अभूतपूर्ण परिणाम निकले जिसने जीवन को सहज भी बनाया और बिनाशकारी भी, तब धरती पर जनसंख्या कम थी और मनुष्य के मैल का निश्तारण प्रकृति के साथ समागमित था। आज सहज सुलभ मशीनरी निर्माण में अत्यधिक मात्रा में रासायनिक चीजों के उपयोग और बढती जनसँख्या के कारण भूमंडलीय वातावरण का मूल अवयव हवा और पानी दुषित हो गया जिससे निरंतर प्राकृतिक चीजों का क्षरण हो रहा है, इस कारण पृथ्वी पर सजीव चीजें पशु-पादप और मनुष्यों का जीवन अनेका-अनेक व्याधियों से ग्रसित हो रहा है। इसलिए जीवन को बचाए रखने के लिए गन्दगी के सुव्यवस्थित निश्तारण के लिए स्वच्छता अभियान को राष्ट्रव्यापी बनाने की जरुरत पड़ी। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत में इस मिशन की कार्यवाही निरंतर चलती रहे जिससे  जनता का भौतिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक कल्याण हो सके व गांधी जी के शूत्र “निर्मलता और स्वच्छता दोनों को स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन के लिए अनिवार्य है” के लिये बेहद आवश्यक है। नीचे कुछ बिंदुओं उल्लेखित करना आवश्यक है जो आज इस मिशन की बानगी उभर कर आये हैं।
भारत के हर घर में शौचालय हो और खुले में शौच की प्रवृति को खत्म करना।
अस्वास्थ्यकर शौचालय को पानी से बहाने वाले शौचालयों में बदलना।
हाथ के द्वारा की जाने वाली साफ-सफाई की व्यवस्था का जड़ से खात्मा करना।
नगर निगम के कचरे का पुनर्चक्रण और दुबारा इस्तेमाल, सुरक्षित समापन, वैज्ञानिक तरीके हो और सही मल प्रबंधन को लागू करना।
खुद के स्वास्थ्य के प्रति भारत के लोगों की सोच, स्वाभाव और नजरिये में परिवर्तन लाना।
स्वास्थ्यकर प्रणाली और प्रक्रियाओं का पालन और क्रियान्वयन।
ग्रामीण और शहरी सभी लोगों में वैश्विक जागरुकता लाना और स्वास्थ्य के प्रति सचेत करना।
पूरे भारत को स्वच्छ और हरियाली युक्त बने जिससे स्वच्छ पानी और हवा सभी को मिल सके।

👍मैं भारत स्वच्छता के लिए क्या करूँगा?:-

    स्वच्छता के परिपेक्ष में आम भारतीय की आज तक की सोच को निम्न बिन्दुओं में उल्लेखित कर रहा हूँ जहाँ आम की बात है तो देश की असी फीसदी जनता आज भी मध्यम और निम्न वर्ग में हैं और इस स्तर पर कुछ दोषीय सोच और व्यवहार हमारे जीवन का हिस्सा चुके हैं अर्थात ये दोष हमारे अंतोचित का हिस्सा बन गए और यहाँ से चीजें जल्दी बहार निकालनी जरा मुश्किल होती है।
👌केवल अपनी और अपने ही घर की सफाई ठीक करना मेरा काम।
👌सड़क पर कूड़ा फेंकने आम बात।
👌बीडी, सिगरेट, पान, गुटका और सभी प्रकार के छिलके और रेपर कहीं भी फेंकने की आदत।
👌जहाँ शंका वहीँ छुपाव में मल मूत्र का त्याग करना और जहाँ-तहाँ थूकना।
👌सफाई या काम करने के बाद शरीर की सफाई में लापरवाह होना।
👌ये मेरा नहीं सार्वजनिक है की सोच।
👌ये मेरा नहीं सरकारी या सम्बंधित व्यक्ति अथवा संस्था का काम है।
      इसके अलावा कुछ अन्य अनुचित आदतें और व्यवहार देखने को मिलते है जो स्वच्छता के परिपेक्ष में अच्छे नहीं हैं। अब ये आदतें और व्यवहार कैसे बदली हों ताकि देश के इस राष्ट्रव्यापी अभियान को सफल बनाया जा सके और दुनियां में भारत की छवि एक स्वच्छ देश के रूप में हो सके इसके लिए देश का नागरिक होने के नाते मुझे उपरोक्त आदतों में बदलाव और निम्न कार्य व जिम्मेवारियों पर गौर और अमल करना नितांत जरुरी है तभी जाकर हम गांधी जी के सपनो के भारत का निर्माण कर सकेंगे।
👌हर व्यक्ति विशेष को संकल्प लेना होगा कि में कम से कम हप्तें में एक दिन सार्वजनिक सफाई में शामिल हूँ, चाहे वह किसी भी दर्जे का मातहत क्यों न है, अपने तम और अहम् को निकालना होगा।
👌कैसे भी हो अपने घर में शौचालय बनाऊँगा और केवल और केवल शौचालय इस्तेमाल करना।
👌घर का कूड़ा कचरा बहार खुले या सड़क में न फेंककर कूड़ेदान का ही प्रयोग करना तथा अपने आस-पास के लोगों को भी ऐसे ही करने के लिए प्रेरित करना।
👌बस, ट्रेन या पैदल यात्रा के दौरान खाने पीने वाली वस्तुओं के खाली पैकेट रैपर को उधर ही न फेंक कर अपनी जेब या बैग में रखना और जहाँ भी कूड़ादान सुलभ हो वहां उसका निस्तारण किया करना, इस आदत का हर आदमी के निजी व्यवहार में आना जरुरी है। यही आदत सार्वजनिक जगह जैसे पार्क, धर्मस्थल, थियेटर आदि में भी अमल में लानी जरुरी है।  
👌गाँव कस्बों में सार्वजनिक सफाई संगठन का हिस्सा बनना जो कि हप्ते कम से कम एक दिन अपने इलाके की सफाई करे इससे वे व्यक्ति भी प्रेरित होंगे जो इस कार्य में रूचि नहीं रखते हैं, क्योंकि उनके घर के आगे का कूड़ा जब और लोग साफ़ करेंगे तो व्यक्ति विशेष को जरुर शर्म आएगी और वो मुहीम का हिस्सा बनेगा। उत्तराखंड पौड़ी जिले के  संगलाकोटी कसबे के लोग ऐसा कर रहे हैं जिससे प्रेरित होकर आप-पास के गाँव बाजार और कस्बों के लोगों ने भी ऐसा कदम उठाया है।
👌अपने आस-पास के लोगों को जागरूक करने के साथ अपने बच्चों और परिवार को जागरूक करना, जब हर घर के सदस्य की सफाई के प्रति उचित मानसिकता होगी तो अपने आप समाज ठीक होगा।
इस अभियान के लिए जरुरी सोच और क्रियान्वयन की शुरुवात पहले अपने घर से होना जरुरी है।
👌सफाई कर्मचारी या नगरपालिका की कहीं भी लापरवाही दिखे उसकी सिकायत सम्बंधित तालूकानो को करना और पुर-जोर तरीके से काम ठीक न होने की समस्या का हल निकलवाना, मेरा तो क्या वाली मानसिकता  और व्यवहार बदलना जरुरी है।
👌रोको और टोको की नीति अपनानी होगी सुधार के लिए किसी न किसी को तो बुरा बनना ही पड़ेगा।
उन घरों, दप्तरों, कारखानों इत्यादि को चिन्हित कर उनकी शिकायत पुलिस या सम्बंधित डिपार्टमेंट में करना जिनका वेस्टेज पानी और मल मूत्र का निकास नदी, नालों, पोखरों और तालाबों में हो रहा हो।
👌मैं भारत सरकार से अपील करता हूँ कि स्वच्छता के नियमो का उलन्घन करने वाले व्यक्ति और संस्था के लिए इतना कड़ा कानून और सजा का प्रावधान किया जाय कि दूसरा व्यक्ति कभी भी ऐसा करने की हिम्मत न कर सके भले ही उसने लापरवाही में टॉफी का कागज ही सड़क पर क्यों न फेंक दिया हो।

संक्षेप:-
    इस तरह हम कह सकते है कि 2019 या और कुछ वर्षों में भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने के लिये स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार का एक स्वागतीय कदम है और माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का संकल्प से सिद्धि के शूत्र को हर भारतीय नागरिक प्रभावी रुप से अनुसरण करें तो आने वाले कुछ वर्षों में भारत वाकई दुनियां का स्वच्छ देश होगा और हम धरती पर जीवन बचाने का परमार्थ कमा सकते हैं। स्वच्छता से हमारे मस्तिष्क में अच्छे विचार और दिल निर्मल भावनायें पैदा होंगी जिससे काम स्वच्छ होंगे, तो देश का स्वच्छ होना लाजमी है चाहे कूड़े कचरे से हो या नासूर बने भ्रष्टाचार अन्य कुकृत्यों से। अंत में चार पंक्तियाँ हर देश वासी को समर्पित करता हूँ:-

मैं मैं नहीं, तू तू नहीं
सदा ही मैं मैं ममियाते रहे
तू तू तुतियाते रहे
बहुत हो गया, करें अब कुछ जतन 
जिससे हो स्वच्छ अपना वतन
जब देश की हर चीज पर समझते हो अधिकार
फिर इसे साफ़ करने से क्यों इनकार ?
चलो यहां-वहां थूकने की आदत बदलें भ्राता
थूकने के लिए नहीं है यह भारत माता।


निबंधकार – बलबीर सिंह राणा "'अडिग'





  



शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

बच्चे


तब काख नीचे थे अब कंधे से ऊपर हो गए।
सच में तब मासूम थे बच्चे, अब मस्त हो गए।

वे बढ़ते चंद्र चरण में हम घटते चरण निहार रहे
रस भरे उन्मुक्त मधु मास में जीवन बिहार रहे
कांधे पर बिठा कर मेले की भीड़ दिखाता था जिन्हें
वे आज भीड़ से हाथ पकड़ खींचने वाले हो गए।
सच  में तब मासूम थे बच्चे, अब मस्त हो गए।

बीज माली-मालिन की अभिलाषा तृप्त कर गए
बगिया में अकुंर दे जीवन की आश जगा गए
प्रेम की छांव में सींचे अंकुर, चुल-बुल पौधे थे कभी
तब हाथ देती थी बेलें अब ठंगरों से ऊपर हो गए।
सच में तब मासूम थे बच्चे, अब मस्त हो गए।

बिस्तर की वो उछल-कूद अब छलांगे हो गए
छुपन छुपाई वाले छुपके बात करने वाले हो गए
तोतली जिद्द से घोड़े बनाने वाले नन्हे बादशाह
अब सबल-संभल के लगाम संभालने वाले हो गए
सच में तब मासूम थे बच्चे, अब मस्त हो गए।

जब तक थे पिताजी वर्षफल हमारा पूजते रहे
हमारी खुशी में वे अपना पूजना भूल गए
आज हमारा भी त्यौहार बन गया पूतों का जन्म दिन
इस खुशी में हम भी अपना मनाना भूल गए।
तब काख नीचे थे अब कंधे से ऊपर हो गए।
सच में तब मासूम थे बच्चे, अब मस्त हो गए।

ठंगरे = बेल को सहारा देने वाली टहनियां
25 अगस्त 2017
बेटे संजू के 17वें जन्म दिवस पर
@ बलबीर राणा अडिग

बुधवार, 16 अगस्त 2017

उम्र के दिये


तेल बाती का किरदार
निभाते-निभाते
इस आश में
उम्र गुजर जाती है कि
एक लौ बन सकें
और वह लौ
रोशन कर सके
उस आशियाने को
जिसमें गृहस्त रहता है।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

गौरव गान


सहस्र कंठों की एक ही गूँज एक ही तान
कदम मिला के गा रहे तेरा गौरव गान
कश्मीर से कन्याकुमारी सबकी एक पहचान
जय हो भारत विशाला जय हो मेरा देश महान।

चमक रहा है भाल तेरा उतुंग हिमालय पर
उन्नत सीना फूल रहा है गंगा के तीरों पर
 एकता का फलक चमकाते पठार और मैदान
जय हो भारत विशाला, जय हो मेरा देश महान

पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण हर रंग की पाती है
सप्तरंगी भेष-भूषा बिलग पंथ और जाती है
ध्वज उठाये तिरंगा लहराये सबका एक है निशान
जय हो भारत विशाला, जय हो मेरा देश महान।

उदर साधना सिंचित करते देव वसुधर किसान
देश क्षितिज पर मुस्तैद बैठा हमारा बीर जवान
 सुख शांति पर ना, कोई पर मारे, रखना इतना ध्यान
जय हो भारत विशाल जय हो मेरा देश महान।

समग्र विजय रथ ले चले जो, उद्योग धंधे हैं
कर्मसाधना लीन यति वे भारत माँ के बंदे हैं
 कर्म बीरों का लोहा मान रहा आज सारा जहान
जय हो भारत विशाला जय हो मेरा देश महान।

15 अगस्त 2017
रचनाकार:- बलबीर राणा 'अडिग'


कृष्ण वंदना



देवकी वसुदेव नन्दन कृष्ण चंद वंदनम
धरा सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

घोर घटा श्रावणी स्याह रात्रि आगमनम
जगदीशश्वरम विष्णु बिपुलं श्याम सुंदरम
मोर मुकुट मुरलीधर चंचल मृदु चपलम
सहस्र वन्दन हे सारथी यशोदा-नन्द नन्दनम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

पावन बाल चरित नटखट गोकुल धामम
गोपीयों संग रांस रचित प्रीत वृन्दाबनम
कृत्य अचंभितम महा मायावी पूतना बधम
इन्द्र दम्भम चूर-चूरम हाथ धरि गोवर्धनम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम

पीताम्बर कण्ठ वैजयन्ती स्वर्ण कुंडल शोभितम
अधर मधुर मुरली हस्त विराजे चक्र सुदर्शनम
काली नाग नथनम कंस काल कवलितकम
धरा शुचि संकल्पम प्रभु दहन पाप नाशकम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिंदम।

स्वर्णिम उषा सुखद निशा बृज भूमि आनंदम
तिमिर लोप, जहां विराजे कण-कण राधेश्वरम
हर मन-हृदय वसियो यशोदा श्यामा सुकोमलम
राधा रुकमणी दिल हरणम योगेश्वर बृजभूषणम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

अद्वितीय बलम पांडव दलम रण महाभारतम
पार्थ सारथी कुशल नेतृत्वम युद्धम कुरुक्षेत्रम
गीता अमृतम अमूर्त पवित्रम मनु आजीवनम
सर्वत्र व्याप्त प्राणी-प्राण, भूत-भविष्यम केशवम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दम गोबिन्दम।

सद मति दे हे महांबाहो उत्थान दे सर्वेश्वरम
ज्ञान क्षशु प्राकाश दे सद्भाव वत्स वत्सलम
हिन्द सुत कर्म प्रधान हो सुर-शोर्य आत्मबलम
रक्ष दक्ष परिपूर्ण सुपुष्ठम जग श्रेष्ठ हो भारतम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दम गोबिन्दम।

रचियता:- बलबीर राणा 'अडिग'



बुधवार, 19 जुलाई 2017

पहाड़ों के गांव


वाह ! कितना सुंदर मनोरम
आपार सुख होगा वहां
लेकिन उस पर्यटक को
नहीं पता
कितनी दुःख की वेदियों से
सजता ये चमन
खटकते रहते बाशिन्दे
जीवन के रंगों को सहेजने में
उषा से निशा भर
अपने गांव को
वैधव्य वेदना से बचाने को।

@ बलबीर राणा "अडिग"

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

किशनी


       
        किशनी बचपन से होशियार चालाक बच्चा था, गांव वाले बचु  पदान को कहते भगवान किसी को औलाद दे तो किशनी जैसा, किशनी व्यवहार कुशल मिलनसार सबके सुख-दुःख का साथी सारथी रहता क्या नाते-रिश्ते क्या गाँव भर में ।   17वें बसंत में 12 वीं करने तक किशनी गाँव की पहचान और भविष्य का हितेषी बन गया था। अब बाप ने अपनी गरीबी का वास्ता देकर आगे की पढ़ाई से मना कर दिया और साथ में गृहस्थी के काम-धाम में हाथ बांटने का कह दिया क्योंकि पदान जी के पास पुश्तेनी पदानचारी की खूब जमीन  थी, करने के लिए खूब पर आमद न के बराबर, वैसे भी पहाड़ों की उर्खड्या जमीन जैसे तैसे पेट तो भर सकती है लेकिन आमदनी न के बराबर देती, वहीं वर्तमान जरुरतों पर घुटने टेकती नजर आती है। गाँव में जिन लोगों की पौ-पगार वाली नौकरी होती उनके बच्चे आगे पढने कस्बों में चले जाते और जो गाँव में पुश्तेनी खेती किसानी पर थे उनके बच्चों का गाँव से बाहर पढ़ना ऐवरेस्ट चढ़ना जैसे होता। किशनी पदान का बेटा तो था लेकिन आगे की पढाई के लिए बाप ने असमर्थता दिखा दी थी, किशनी की घर से बाहर जाकर पढ़ने या और काम करने की बहुत इच्छा थी। लेकिन गरीबी मुँह वाये खड़ी थी और बाप के सामने आज्ञाकारी पुत्र जाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया, इसी ललक के चलते किसी के सुझाव पर खूब दौड़ भाग की और फ़ौज में भर्ती होने की तैयारी करने लगा। देखा जाय तो औपनिवेशकाल से ही पहाड़ के कर्मठ और मेहनती युवाओं के सैन्यसेवा ने आजके जागरुक और शिक्षित उत्तराखंड की नींव रखी। तबकी मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था से ही लोग बाहर शहरों की तरफ आये जिससे बच्चों की शिक्षा और व्यगतिगक्त आर्थिकी की राह खुली। खैर आज भी ज्यादा बदलाव नहीं हुआ यही सब चल रहा है। एक आध साल में किशनी के मन की दुविधा को थाह मिली, भूमियाल देव देणु (कृपा) हुआ और किशनी भारतीय सेना में भर्ती हो गया।
      ट्रेनिंग पूरी करने पर छुट्टी में माँ ने ईशारों में सास सुख लेने का  संकेत दे दिया, तब बच्चों की शादी कम उम्र में ही हो जाया करती थी, माँ ने कहा बुबा मेरे से भी अब अकेले नहीं होता, उम्र तू देख ही रहा है, लाटा अब तू नौकरीं लग गया सयाना हो गया अब अपनी माँ को कमर सीधी करने का अवसर दे दे इन हड़गों ने कब तक घिसना इतनी बड़ी जमीन और घर जंगल में। जैसा तुम करोगे कल तुम्हारे भी वैसा करेंगे 'मुच्छायलु जगी पिछने आन्दू बाबा' अब मेरे बस का नहीं तुम्हारे इन सैंचारों को खैनी करना। छुट्टी खत्म होने के बाद लड़की ढूंढने का दौर शुरू हुआ, बचु सिंह की पुश्तेनी पदानचारी की धाक तो थी ही, साथ में लड़का गुणी और सरकारी नौकरी वाला, रिश्ते  मुंह मांगे आने लगे, पड़ोसी गांव के सभ्रांत रौत परिवार से रिश्ता तय हुआ दादा फ़ौज से ऑर्डिनरी कैप्टन सेवारत और  बाप सरकारी ठेकेदार, लड़की ने भी जैसे तैसे इंटर कर बाप दादा की साख बचा ली थी कि रौत खानदान की च्येली पढ़ी लिखी है। च्येली का आधुनिक सब्ज-बाग़ नाक-नक़्शे चरम पर थे कारण इकलौती बेटी और परिवार की आमदनी औरों से ठीक ठाक होना। किशनी साल भर बाद बॉर्डर से शादी के लिए छुट्टी आया, धूम-धाम से शादी हुई, पदानों और रौत खानदान के इस रिश्ते की तारीफ कई दिनों तक इलाके में मुंह जुबानी वायरल रही। सुरु सुरु में किशनी की ब्वारी गांव में  नयीं गौड़ी के नौ पुळै घास वाली रही थी, जिसको देखो वही तारीफ के पुल बांधता था, बल खानदान की बेटी जो ठैरी। गाँव की सभी जेठानी, देवरानी, ननद सबकी पसन्द किशनी की सरिता, क्योंकि दहेज़ में बहुत कुछ आ रखा था सबको ब्वारी ने मनपसंद गिप्ट भी दिया था।
      शुरुवात के एक वर्ष ब्वारी को पहाड़ी बहु धर्म निभाना कंटकों की सेज जैसा रहा मायके की नकचड़ी लाडली ने मायके में ज्यादा काम किया नहीं था। सासू की सास सुख तम्मना, तम्मना ही रही उस बेचारी का सुबह से शाम तक गृहस्थी में खटकना यथावत रहा। साल भर में ही बहु के पांव भारी हो गए, डिलीवरी से पहले किशनी छुट्टी आ गया पुत्र रत्न हुआ कुछ दिन पदान मवासी नयें मेहमान की खुशी में सरोबार रहा। दो महीने छुट्टी पूरी होते ही सरिता ने साफ शब्दों में कह दिया बाल बच्चे वाले हो गए अब बच्चे की पढ़ाई भी देखनी है गाँव का माहौल आपको पता ही है जुंगड़े से ही बच्चे गाली सीख जाते हैं। बच्चा तो बहाना था शहरों की चकाचौंध ब्वारी को गाँव में बैठने नहीं दे रही थी। गर्मियों की छुट्टियों में गाँव आयी कतिपय जेठानियों के शहरी ठसके-मसके से वह बहुत प्रभावित होती थी। बहु ने किशनी को साफ शब्दों में बता दिया मेरे बस का नहीं तुम्हारी सैंचारों का कोदा गोड़ना मैंने अपने मायके में एक सोल्टी गौबर की नहीं उठायी उपर से तुम्हारी ब्वै की दिन रात की कचर-कचर। मेरी सारी सहिलियाँ शहरों में शिफ्ट हो गयी। अकसर कभी किसी की भी नहीं मानने वाला मर्द सैंणी के आगे भीगी बिल्ली बनते देखा जाता है किशनी तो बचपन से सादगी व्यवहार वाला आदमी जो ठैरा कैसे नहीं मानता, सैंणी के दबाव के चलते उसने माँ बाप की ममता आकांक्षाओं और माटी प्रेम पर पत्थर रखा और साल भर बाद ही डेरा-डम्फरा उठाकर शहर में किरायेदार बन गया। 
     माँ ने उनकी सुगबगाहट सुन एक महीने पहले ही बात-चीत बंद कर दी थी और जाने के दिन बोग (किनारे) लग गयी थी पर बाप  दुनियाँ की लाज के बसीभूत नाती को गोदी रखकर शहर छोड़ आया था। सब द्वकुले के यकुले हो गए घर में बुड्ढा बुड्डी शहर में ब्वारी नाती। दिन, हप्ते, महीने के साथ समय की उड़ान गतिमान रही। शहर में सरिता परफेक्ट मोर्डन मेम बन गयी और गांव का होशियार किशनी जोरू का गुलाम किशन सिंह हो गया। किशनी की सीमित आमदनी घर की बेसिक जरूरतों से ज्यादा साज-श्रृंगार, घूमना-फिरना, फ्रेंडशिप किट्टी पार्टी इत्यादि में घुरमुन्डी खाने लगा। परिवार भारतीय परिवार व्यवस्था के अनुरूप हम दो हमारे दो ही हुए, बच्चों की पढ़ाई को सरकारी स्कूल के बनस्पत प्राइवेट अंग्रेजी मीडियम में तवज्जो दी गयी क्योंकि वर्चस्व के लिए अंग्रेजी जरूरी थी, सरिता अब मेडम पुकारे जाने पर गौरवान्वित होती थी, गांव में माँ पिता खोखली इज्जत पर खुश रहते थे कि लड़का शहर बस गया है लेकिन बुढ़ापे में नातियों के प्रेम की आग में रातें तप्त रहती और खर्चे के नाम पर पुत्र ऋण अपंग, हाँ दादा-दादी आने जाने वालों के पास महीने में एक बार घर की दाल और सेर-तामी घी पोतों को भेज दिया करते थे, खून की पीड़ा असहनीय होती साब।
       अब गांव का किशनी, किशन सिंह शहर वाला हो गया गाँव जाना तीन-चार साल में एक बार मुश्किल से कुछ जरूरी रश्म अदायगी तक सीमित रह गया, बाकी घर गाँव यार-आबत के सुख-दुःख के लिए समय का टोटा पड़ने लग गया असल में समय का टोटा इच्छा नहीं बल्कि टका ज्यादा डाल रहा था क्योंकी एक बार गाँव जाने से अतरिक्त वित्तीय बोझ बन जाता। चार दीनी गांव की यात्रा में मेडम बच्चों का पिकनिकी मूड, रिश्तोंदरों से भावनात्मक सदभाव में मिठाई, बिस्किट, छोटा मोटा कैंटीन का सामान आदि दुनियादारी की देखा देखी करनी ही पड़ती थी इसलिए जाने के कई नाम से न जाने का एक ही नाम होना हितकर लगा। अब वह हरफनमौला किशनी नहीं अनर्गल जरूरतों का जोरू बन सर पर अनियंत्रित बेलगाम झूटी प्रतिष्ठा के बोझ को उठाये चल रहा था। 
          अब घर गांव में भी तब के नयें पौधे पेड़ बन गए थे पुराने बृक्ष जिन्होंने प्यार की छांव में सींचा था कुछ टूट चुके थे कुछ ढोर बन गए थे। कुछ साल बाद माँ बाप भी अपनी सांसारिक यात्रा पूरा करके चले गए, यार-रिस्तेदार सब अपनी अपनी गृहस्थी में निमग्न थे। संसार की रीति-नीती आउटपुट ईनपुट के सिद्धान्त पर काम करती है साब, किशन सिंह का नाते रिस्तेदारी में आउट पुट जीरो था इसलिए इनपुट का ब्लैंक होना लाजमी था कभी आउटपुट देने की कोशिश भी की पर सरिता मेडम के आगे घिघ्घी बंध जाती। समय अपनी चाल से चलता रहा और किशन को पता नहीं चला कब नौकरी पूरी हो गयी चौबीस साल तक भारत के चारों क्षितिजों का भ्रमण कर पेंशन आ गया अब वह एक्स फौजी हो गया साथ में जमा पूंजी ने शहर में अपना घर होने की लाज बचा ली थी।  बच्चे घर के हवाई हाई टेक माहौल के चलते पढ़ाई में ज्यादा अचीवमेंट नहीं कर पाए मात्र प्राइवेट में जेब खर्चे की पूर्ति कर रहे थे घर का खाना खर्चा और सांसारिक दायित्व पेंशन पर आश्रित रह गए। 
         अब सरिता मेडम को बढ़ती उम्र और खट्टे मीठे अनुभवों से जवानी की दिनचर्या की गल्ती का अहसास होने लगा था क्योंकि जवानी की चहल पहल 'कम तेल में ज्यादा चिबड़ाट वाला ही रहा' पास पड़ोसियों ने बच्चों पर ज़्यादा ध्यान दिया और उनके बच्चे अच्छी पढ़ाई कर अच्छी नौकरी पर थे, उनके सामने अपने घर की स्थिति देख शर्मिंदगी महसूस होती। दोस्ती और उठना बैठना कम कर दिया था। अब वह एक मजे हुए ड्राइवर की तरह जीवन की गाड़ी उबड़ खाबड़ रस्तों पर संभाल कर चला रही थी।
       जीवन के इसी क्रम में किशन सिंह ने एक दिन शहरी जीवन को हट कर हिम्मत बांध चौथी अवस्था में गाँव की कूड़ी संवारने निकला जिस कूड़ी में अब चूहे भी रहने से डर रहे होंगे, कभी जमाने में पदानो की सजी तिबारी आज जीर्ण हो गयी थी।  यकुलांस की पीड़ा में रो रो कर उस डंडयाली के आँशू सूख चुके थे। पदानो का जो चौक एक घड़ी भी बिना उठने बैठने वालों से खाली नहीं रहता अब उस चौक में जाने से लोग डरते थे कि कहीं सांप बिच्छू न खा जाय। उसने फिर से पित्रों की धरोहर जीवंत करने का मन बनाया और दुबारा पच्चास साल पीछे का किशनी बनने गांव चला आया। लेकिन अब तक समय अपने मजबूत पंखों के साथ इतनी दूर उड़ चला था कि गाँव में किशन को किशनी बोलने वाला कोई नहीं मिला, वे चेहरे हमेशा के लिए विलुप्त हो गए थे जो ड्यूटी पर जाने के दिन गाँव की आखरी मुंडेर तक आँसुओं के साथ सुखी शांति रहने का आश्रीवाद दे विदा करते थे।
          हाँ आज भी गाँव में सब थे लेकिन किशनी ताऊ नहीं शहर वाला किशन सिंह ताऊ बोलने वाले थे। आज किशन सिंह ताऊ के संबोधन ने उसे प्रवासी होने का अहसास कराया। मेहमानदारी में भी कब तक खाता और अकेले गृहस्थी जमाने को जेब इजाजत नहीं दे रही थी। कुछ दिन अकेले खंडर पड़े घर की झाड़ पौंछ की रहने लायक बनाया लेकिन गाँव के माहौल ने उसे फिर पचास साल पहले के किशनी बनने की आस नहीं दी। गाहे बगाहे अब गाँव वालों की खुसर फुसर कानों में पहुंचने लगी कि बुड्डे की परिवार से नहीं बन रही होगी तभी तो बुढ़ापे में हडगे तोड़ने घर आया। फिर एक बार दिल पर पत्थर रख उसने उसी शहर की बस पकड़ ली जिस शहर को उसने तिलांजलि देने की ठानी थी। आज चलते चलते बस की खिड़की से वह असहाय सा उस गाँव, खेती, जंगल, गाड़-गदने, धार कांठों को निहार रहा था जहाँ किसी समय का चुलबुल किशनी चहकता कुदता फांदता हर घड़ी का साक्षी बनता था। 
        पता नहीं किन कर्मो का लेख था जो उसे वह थाती प्रवासी कहकर दुत्कार रही थी जो उसकी आत्मा में बसी थी। आज रह रह कर उसकी आँखों के सामने पीताजी मांजी और गाँव के उन बुजुर्गों की सुरत नजर आती जिनका वह आँखों का तारा हुआ करता था लेकिन आज वही साये जैसे कह रहे हों जा किशनी जा रे बुबा अब तू इस माटी लायक नहीं रहा रे। गाड़ी नीचे के लिए और उसकी नजरें ऊपर गाँव की ओर और आँखें खिड़की के शीशे सटी डबडबा रही थी बाहर जोर से डाड मारकर रोने का मन कर रहा था लेकिन लज्जा से आँशुओं को आँखों में पीता रहा था। गाड़ी के हिचकोलों को तो हाथ काबू कर रहा था लेकिन मन के हिचकोले बेलगाम हो पूरे शरीर को उछाल उछाल कर पटक रहे थे।

कहानी :- बलबीर राणा "अडिग"
गढ़वाली शब्दों का अर्थ:-
उर्खड्या - बिना सिंचाई वाली खेती । पदान - अंग्रेजों द्वारा नियुक्त मालगुजार । सैंचार - मालगुजारी में मीले बड़े खेत। व्बारी - बहु। गौड़ी - गाय। पुळै -घास का गठ्ठा। जुंगड़ा -रिंगाल का टोकरी नुमा पालना। द्वकुले - दोहरे आदमियों का परिवार। यकुले -अकेले। कूड़ी - मकान। तिबारी - मकान का ऊपरी जंगला जिस पर काष्ठ कला की नक्कासी हुआ करती है। यकुलांस - अकेलापन। डंडयाली - मकान का दो मंजिला वाला छज्जा/कमरा। 

मंगलवार, 13 जून 2017

आतंकवाद के प्रति सतर्कता, जागरूकता और क्रियानवयन

संदिग्द वस्तु एवम आदमी के विषय में हमारे देश में अभी तक कोई आम सतर्कता और जागरूकता नहीं है, जहां देश के अंदर अपने को सम्भ्रान्त सुशिक्षित कहने वाले व्यक्तियों में भी आतंकवादियों के खतरे के प्रति अवेर्नेश लागभग ना के बराबर है तो आम जनता का क्या कहना, हमारे देश में इतने खतरनाक मुद्दे पर सतर्कता एवम जागरूकता नगण्य के बराबर है यह  मात्र कुछ विज्ञापनों, हवाई, रेलवे व कुछ बस स्टेशनो और सरकारी कार्यक्रमो की इतिश्री तक सीमित है, बाकी आम जगह बाजार, शॉपिंग मॉल, रेस्तां, सिनेमा हॉल, भीड़ भाड़ वाली जगह, मेले, उत्सव और धार्मिक स्थलों पर  सिफर है, देश की 90 फीसदी आम शहरी को पता ही नहीं कि अगर आतंकवादी वारदात मेरे सामने हो जाय तो मुझे क्या करना है और आज भी  देश में लावारिस वस्तु का मिलना किश्मत या तोहफा मिलने का नजरिया ज्यों का त्यों है या किसी की भलाई के लिए वस्तु को संभाल के रखने की मानवता विद्यमान है।
    
       वैश्विक पटल पर चल रही चरम आतंकी घटनायें जिनका वर्तमान trained बॉम्बिंग (IED ब्लास्ट), PBIED (personal Born  IED) अर्थात सुसाईड बॉम्बिंग, VBIED (Vehicle Born IED) बारूद से लैस गाड़ी जिसे IED की तरह इस्तेमाल करना या आत्मघाती की तरह, भीड़ के बीच आर्म्ड अटैक, या स्टैंड ऑफ अटैक इत्यादि नयें-नयें तरीकों से मानव त्रासदी को अंजाम दिया जा रहा है और इनोसेंट जनता बेमौत कीड़े मकोड़ों की तरह मारी जा रही है। IED धमाकों औऱ वीभत्स आर्म्ड आतंकी घटनाओं से हमारा देश भी अछूता नहीं है देश का आधा हिस्सा जम्मु कश्मीर, नार्थ ईष्ट और नक्षल प्रभावित क्षेत्र (रेड कॉरिडोर) जहां पूर्ण प्रभावित है वहीं देश की राजधानी व आर्थिक राजधानी सहित देश का बाकी हिस्सा आंशिक रूप से प्रभावित है। देश के अंदर बहुआतयात मात्रा में ANE (anty nationalist elements) की मौजूदगी है ये कब कहाँ घटना को अंजाम दे दें , देश की खुपिया एजेंसीज और सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बनी है।
     कहते हैं जब तक आदमी को ठोकर नहीं लगती वह संभालता नहीं परंतु ऐसा नहीं कि हमारे देश पर ठोकर नहीं लगी 26/11 जैसे जघन्य आत्मघाती हमला मुंबई सीरियल बम्ब ब्लास्ट,  सुकुमा, दंतेवाड़ा आदि जैसे IED हमलों से निर्दोशों के खून के धब्बे अभी सूखे नहीं औऱ आये दिन इन घटनाओं से मानवता की आत्मा कराह उठती है, किसी व्यक्ति विशेष के परिपेक्ष में देखा जाय तो कहते हैं दर्द उसी को होता जिसका मरता है यही आम जन भावना देश के आम आदमी पर हावी है जिस परिवार का खेवनहार, चिराग या प्रिय ऐसी घटनाओं का शिकार हुआ है चाहे उसमें सुरक्षाबल हो या आम निर्दोष उन परिवारों की आत्मा में झांके तो फिर पता चलेगा जीवन जीते जी कैसे कष्टप्रद जहनुम बन जाता है। आज हमारे देश में सरकार व सम्बंधित विभागों और मीडिया द्वारा आतंकी घटनाओं की जानकारी सूक्ष्म रूप में दी जाती है और घटना के बाद हाईप्रोफाइल मीटिंग,  डिबेट, सेमिनार संगोष्ठियां, रिसर्च और प्रिवेंशन की चिन्ता चिता की आग के साथ बुझ जाती है इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। विश्व की बृहद लोकतंत्र की स्वतंत्र मीडिया का हाल ये है कि आम जनजागरण और राष्ट्र रक्षा के मुद्दों को छोड़ कर किसी एक राजनीतिक पार्टी की गोद में बैठ चाटुकारिता से जनता को दिग्भ्रमित करती आयी है और सोशियल मीडिया पर भ्रम फैलाने वालों का जाल बना है ऐसे में इस संवेदनशील मसले पर सतर्कता और जागरूकता आम जन के जीवन व्यवहार में कैसे लाया जाय यह देश के बुद्धिजीवियों और नीतिनियन्ताओं के लिए मंथन व चुनोती का काम है।  ISIS, अलकायदा जैसे दुर्दांत वैश्विक आतंकी संघठनो का अंकुर देश में अंकुरित हो चुका है और इस  अंकुर को नष्ट करने में  आम जनता की सतर्कता और जागरूकता सुरक्षाबलों के लिए एक बडा कारगर हथियार साबित हो सकता है व देश के अंदर मौजूद आतंकियों के सफेद संरक्षकों के मंसूबों को धवस्त किया जा सकता है। आज जिस प्रकार देश की राजनीति पतितता  कुर्सी की भूख के चलते व्यग्र हुई है और विरोध का उग्र तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है ऐसी वारदातों और उग्र लोगों की भावनाओं का आतंकी आराम से फायदा उठा सकते है इसलिए देश में ऐसे हिंसक प्रदर्शनों के लिए कड़े कानून की जरूरत है। सुरक्षा बलों के साथ आम जनता को चाहिए कि ऐसी भीड़ का बारीकी से अवलोकन  करें कि इस प्रदर्शन की आड़ में कोई देश का दुश्मन बड़ी अनहोनी न कर दे यह एक भारतीय होने के नाते अपने हित के संघर्ष के साथ देश हित और जनहित के लिए आवश्यक है ताकि कोई बड़ी जनहानि होने से बचाया जा सके।
     वर्तमान में  सूचना और सोशियल मीडिया क्रांति का प्रभाव जहां एक ओर ऐसे जघन्य आतंकी घटनाओं के लिए ईँधन का काम कर रहा है वहीं इन माध्यमो को सतर्कता व बचाव प्रक्रिया (Prevention Measure) के रूप में बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता। आज स्मार्टफोन लगभग देश की आधा से अधिक जनता के हाथों में है इन स्मार्ट फोनों के माध्यम से संदिग्द व्यक्ति और डिवाइज (वस्तु) की सही स्थिति और उपस्थिति सुरक्षा एजेंसीज के साथ अन्य लोगो को कम समय में  पहुंचाई जा सकती है लेकिन ध्यान रहे भ्रामकता से बचा जाय और न ही हर खबर को भ्रम समझा जाय , विश्व के कतिपय देशों में घटित आतंकी घटनाओं का कम प्रभाव और कम समय में आतंकियों के खातमे में वहां की जनता की अवेर्नेश काम आयी है उसमें जनवरी 16 पेरिस सीरियल आर्म्ड अटैक हो या अभी हाल में हुए मेनचेस्टर हमला आदि शामिल हैं। आज के माहौल को देखते हुए चाहिए कि देश के हर नागरिक विशेषकर महानगरों में रहने वाले व्यक्ति के जेब में अनिवार्य एक दिशा निर्देश पुष्तिका दी जाय और हर एक सार्वजनिक जगह पर पोस्टर बेनर और ऑडियो विज़ुअल जागरूक संदेश दिया जाय ताकि आम आदमी की सोच से यह वेचारा और हर लावारिस वस्तु किश्मत से मिली या मेरा क्या छोड़ो का नजरिया बदला जा सके।
      आतंकवाद और नक्षलवाद प्रभावित क्षेत्रों में हर दिन एक न एक धमाका हो रहा है और कोई न कोई इनोसेंट चपेटा जा रहा है फिर भी वहां के व्यक्ति विशेष और सरकारी सतर्कता व जागरूकता में कोई बदलाव नहीं आ रहा है जिसका मर रहा है वह रो रहा है जो बच गया अल्लाह की रहमत समझता है। अगर हर व्यक्ति किसी संदिग्द वस्तु के बारे में अवेर्नेश रखता है तो समय रहते एक बड़ी घटना को रोक जा सकता है या उसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। मैं तो यह मांग करूँगा की ऐसे क्षेत्रों में अन्यवार्य रूप से बतौर IED awareness ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। अंत में मैं देश हित और जनहित के लिए हमारी सिखलाई व मेरे व्यक्तिगत कुछ  सुझाव हैं जिन पर अमल किया जाय तो आज आक्रांत इस चैलेंज का मुक़ाबला किया जा सकता और अपने परिवार को बचाने के साथ देश के निर्दोश नागरिकों को बचाने का पुण्य कमाया जा सकता है।
आम व्यक्ति विशेष को ध्यान देने और करने वाली बातें:-
1. कहीं भी किसी भी लावारिस चीज को न छुएं और उसे संदिग्द मान कर जल्द से जल्द नजदीक सुरक्षा एजेंसियों को सूचित करे ये आम तौर पर लालच वाली होती है जैसे लेपटॉप, टेब, मंहगा बैग, सूटकेश, घड़ी , ट्रांजिस्टर, मोबाइल फोन, टॉर्च, पॉवर बैंक, खाने का टिफीन, खाने की वस्तु बच्चों के खिलौने इत्यादि।
2. ऐसी चीजों या जगह को इग्नोर न करें जो आपको अपनी वास्तविक स्थिति से हट कर अलग थलग लगे।
3. अगर आप रिमोट एरिया से हो या वहां किसी कार्य को अंजाम दे रहे हो तो किसी भी रस्ते को सेफ न माने कहीं अनप्रोपर बिजली की तार, ट्रिप वायर, कोई टिन, मरा हुआ जानवर, पत्थरों की ढेरी, खुदी मिट्टी , दबी घास इत्यादि अनप्रोपर लगती है तो उसे संदिग्द माने।
3. भीड़ भाड़ वाले इलाके में लावारिस खड़ी साइकिल, मोर्टर साइकिल, कार इत्यादी वाहन कोई छोड़ जाता या कोई व्यक्ति इन वाहनों में कोई चीज रख के तुरंत निकल जाता हो तो सुरक्षाबलों को तुरंत जितना जल्दी हो सूचित करें।
4.  कहीं किसी बड़े आयोजन जैसे रैली, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल प्रतियोगिता, धार्मिक आयोजन, कोई सेरेमनी इत्यादि होने से पहले या दौरान संदिग्द व्यक्ति टोह लेता मिले, ऐसे व्यक्ति के हाव भाव, नजर,  व्यवहार, पहनावे जैसे बड़े और ज्यादा कपड़े, बड़ा बैग व अलग हरकत से अनुमान लगाया जा सकता वैसे यह अनुमान लगाना आम व्यक्ति के लिए मुश्किल है लेकिन शकिया नजर और थोड़ा मनोविज्ञान का इस्तेमाल करके अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है ध्यान रहे आपने केवल शक करना है छानबीन नहीं।
5. किसी भी प्रकार के वाहन को कोई लापरवाही और अन्धाधुंन्द स्पीड में चला रहा हो और रोड सेफ्टी प्रवेंशन का ध्यान न रख कर चल रहा हो उसकी रिपोर्ट तुरंत पुलिस या सेक्युरिटी फोर्स को दें।
6. कोई व्यक्ति कहीं भी सुरक्षा जांच से बच निकलने की कोशिश कर रहा हो या बच निकल गया हो इस प्रकार का व्यक्ति पक्का क्राईमर है बसर्ते वह आतंकी न हो।
7. कोई व्यक्ति अनप्रोपर तरीके या कोड वर्ड में बात कर रहा हो या किसी पब्लिक साईबर बूथ में रोज कॉल या इंटरनेट सर्फिंग करता हो उसे भी संदिग्द माने और निगरानी रखें।
संक्षेप में कहें तो आतंकवाद की तकनिकी इतनी बृहद और आधुनिक है कोई भी वस्तु या जगह नहीं बची जिसका इस्तेमाल आतंकियों द्वारा IED के लिए न किया गया हो, जहां सुरक्षा एजेंसियां एक का तोड़ निकालती आतंकवादी एक कदम आगे नई तकनीकी को ईजाद करते आये हैं।
सुरक्षाबल के सदस्य को ध्यान व अमल में लाने वाली बातें:-
1. देश के सुरक्षा तंत्र से जुड़े सभी सैनिक, अर्धसैनिक, केंद्रीय पुलिस बल,  राज्य पुलिस बल व गुप्चर संस्थाओं के मेम्बरस का नैतिक दायित्य है कि उपरोक्त सभी बातों का ध्यान देने के साथ अमल में लाना अन्यवार्य है साथ ही  खुद भी सर्तक रहना होगा और अपने आस-पास के लोगों को भी सतर्क रखन है और जानकारी देकर जागरूक करना होगा चाहे डियूटी, आकस्मिक डियूटी या छुट्टी पर ही क्यों न हो अपनी शकिया निहाग हमेशा दैडाते रहना चाहिए।
2. मेरा तो क्या है चुप-चाप निकले का रवय्या छोड़ना जरूरी है।
3. किसी अनप्रोपर जगह जहां तैनाती न हो या छुट्टी पर हो ऎसे स्थानों पर फिजिकल पहल से ज्यादा वहां के नजदीकी सुरक्षा एजेंसीज को सही इतला देना और सहयोग करना हितकर होगा।
4. बिना जानकारी, अधूरी जानकारी या बिना RSP (रेंडरिंग सेफ प्रोसीजर) अर्थात इलाके को बम्ब थ्रेट से सुरक्षित करने वाले इक्विपमेंट के बिना किसी संदिग्द वस्तु को न छेड़ें या कार्यवाही न करे यानी डेड हीरो न बने।
5. बिना हुकम के सस्पेक्टिव डिवाईस पर कार्यवाही न करें और बम्ब डिस्पोजल स्क्वॉड को इतला करें व उत्सुकता से बचें।
6. सिविल जनता को इलाके से सेफ करें, भीड़ इकठ्ठा न होने दें और जनता को भरोसा दिलाएं दहशत न फैलाएं दहशत फैलाने से रोकें जनता जल्दी भगदड़ मचाती है जिससे ज्यादा जान माल का नुकशान होता है।
अन्य सरकारी महकमे और प्राइवेट संस्थाओं द्वारा उठाये जाने वाले कदम:-
 देश की इंटेलिजेंस एजेंसीज और सुरक्षा बलों द्वारा हरसम्भव पर्याप्त कार्यवाही की जाती रही है और करते आये हैं लेकिन इनके अलावा गैर गुप्चर या गैर सुरक्षा एजेंससियों व प्राइवेट संस्थाओं को निम्न आवश्यक कदम उठाने  की जरूरत है।
1. सभी पब्लिक प्लेस पर पोस्टर बेनर और हर समय अनाउंस से सर्तकता संदेश व सुरक्षित बचाव की कार्यवाही को ब्रॉड कास्ट किया जाय।
2. प्रिंट मीडिया दैनिक, साप्ताहिक, मासिक समाचार पत्र,  न्यूज लेटर, मैगजीन आदि में नित्य आतंकवादी घटनाओं से सबंधित सतर्कता व प्रवेंशन मेजर कॉलम कॉमर्शियल बिज्ञापन की तरह अन्यवार्यता से छपवाये जाय।
2.  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आकाशवाणी, एफ एम रेडियो, टीवी इत्यादि में हर कॉमर्शियल ब्रेक में सतर्कता ऐड अनिवार्य रूप से प्रसारित किये जाय।
3. सोशियल मीडिया में सरकार के वैध अकाउंट से नित्य अलर्ट और प्रवेंशन मेजर पोस्ट करना व उचित खबर व सजेशन देने वालों को ईनाम देने का प्रबंध किया जाय।
4. सभी प्रकार के प्राइवेट पब्लिक प्लेस जैसे शॉपिंग मॉल , रेस्तां, पिकनिक हब, धार्मिक स्थल, सिनेमा हॉल, बड़े मार्केट, मेले, रैलियां व खेल स्थलों इत्यादि जमबाड़े की जगह पर जिम्मेवार संस्था द्वारा अलर्ट, डू और डोनट्स लिखित, ऑडियो विज़ुअल रूप में नित्य प्रसारित किया जाय और पर्याप्त सुरक्षा चैकिंग स्क्वॉड की नियुक्ति की जाय।
5. सभी प्रकार के पब्लिक वाहनों पर सर्तकता विज्ञापन चिपकाए जाय।
6. स्वेच्छिक स्वयं सेवी संस्थाओं को जनजागरूकता अभियान के लिए प्रोत्साहित किया जाय।
7. देश के अंदर एक हेल्प लाईन नंबर और मोबाईल ऐप इस प्रकार की घटना की सूचना के लिए जारी किया जाय।
उपरोक्त सर्वत्र जगहों पर आतंकवाद सर्तकता संदेश और निरोधक कार्यवाही करना या होने का मेरा मतलब देश के अंदर दहशत फैलाना या दहशत का माहौल बनाना नहीं बल्कि हर व्यक्ति के मसल मेमोरी में हर समय खुद चौकन्ना रहना और दूसरे को  रखना है ताकि अपने देश को इराक सीरिया बनाने से रोका जा सके। देश के सबसे निन्म वर्ग के वासिंदा जो अभी सूचना क्रांति से नहीं जुड़ा है तक ये संदेश पहुंचना जरूरी है कि खुद की उन्नति जानसलामती और राष्ट्र अखंडता के लिए उसका थोड़े से पैसों का लालच खतरनाक हो सकता है साथ ही देश के नागरिक को ये समझना होगा कि कोई भी भड़काऊ संदेश कट्टर धार्मिक उन्माद से कैसे बच सकते हैं उपद्रवी तत्व आम गरीब को ही हथियार बनाता हैं। एक रिक्से और ऑटो वाले को बखूबी पता हो कि मेरे वाहन में छूटा हुआ समान बैग और बैठा हुआ व्यक्ति संदिग्द हो सकता है उसे अपनी सुरक्षा एजेंसी पर इतना भरोसा हो कि वह बिना लेट लतीफे के निर्भीक हो कर सुरक्षा एजेंसी को सूचित करें इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों को अपनी पहले वाली दमन नीति से उठकर जनता से कैसे  सहयोग लिया जा सकता है के लिए कदम उठाने होंगे तभी आतंकवाद रूपी दानव के कहर से विशाल भारतवर्ष को बचाया जा सकता है।

जय हिन्द
#राष्ट्रहित_में_जारी

लेखक :- बलबीर राणा "अडिग"
चमोली उत्तराखंड

आदमी के विषय में हमारे देश में अभी तक कोई आम सतर्कता और जागरूकता नहीं है, जहां देश के अंदर अपने को सम्भ्रान्त सुशिक्षित कहने वाले व्यक्तियों में भी आतंकवादियों के खतरे के प्रति अवेर्नेश लागभग ना के बराबर है तो आम जनता का क्या कहना, हमारे देश में इतने खतरनाक मुद्दे पर सतर्कता एवम जागरूकता नगण्य के बराबर है यह  मात्र कुछ विज्ञापनों, हवाई, रेलवे व कुछ बस स्टेशनो और सरकारी कार्यक्रमो की इतिश्री तक सीमित है, बाकी आम जगह बाजार, शॉपिंग मॉल, रेस्तां, सिनेमा हॉल, भीड़ भाड़ वाली जगह, मेले, उत्सव और धार्मिक स्थलों पर  सिफर है, देश की 90 फीसदी आम शहरी को पता ही नहीं कि अगर आतंकवादी वारदात मेरे सामने हो जाय तो मुझे क्या करना है और आज भी  देश में लावारिस वस्तु का मिलना किश्मत या तोहफा मिलने का नजरिया ज्यों का त्यों है या किसी की भलाई के लिए वस्तु को संभाल के रखने की मानवता विद्यमान है।

रविवार, 12 मार्च 2017

आयी होली


पूरब से निकली किरण
अधरों पर मुस्कान लिए बोली
उठो अलस भगाओ, देखो बाहर
सजधज कर आयी होली।

अबीर गुलाल पिचकारी लेकर
खड़ी है हुरियारोँ की टोली
उल्लास ही उल्लास, देखो झांककर
बासंती फुहार संग आयी होली।

छोड़ो कल की बातें, गले मिलें
मेरा- तेरा अब तक बहुत हो ली
मन का विश्वास दिलों में प्रेम
भाईचारा लेकर आयी होली।

रंगी है धरती रंगे हैं चौक चौबारे
सजी बिलग रंगों की एक रंगोली
मधुमास है पकड़ो, प्रेम झर रहा
आंनद की प्याली पिलाने आयी होली।


रचना: बलबीर राणा 'अडिग'
12 मार्च 2017

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

आगे और भी है



क्षितिज के पार जहाँ और भी है
तारों से ऊपर आसमाँ और भी है,
मत समझ अभी को आखरी पड़ाव
तेरी हस्ती की मंजिलें आगे और भी है।

दर्द और सिकन बहुत है इस जहाँ में
टीस जो मिलने वाली आगे और भी है,
देखा है जो रंग शबाब अब तक यहाँ
रंगीनियों से भरा चमन आगे और भी है।
मत घबरा दोस्त चंद रेतीले टीलों से
कोशों रेगिस्तान पार करना और भी है
ये तो एक छोटा इम्तिहां था जिंदगी का
मंजिल के लिए महासंग्राम और भी है।
लम्बे प्रेमालिंगन के बाद भी दिल टूटते देखे
चंद लम्हों में दिलदार बन बैठे और भी हैं,
खप जाती है उम्र इस इश्किया मिजाज समझने में
याद रहे बशंत के बाद तपती गर्मी का दौर भी है।
कर गुमान हुस्ने जवानी का यूँ खुली सड़क में
कामदेवों की भरमार गली में और भी है,
ठिकाने बदलने वालों की नक़ल महँगी पड़ेगी
उनके आशियाने तड़ी पार और भी है।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'