कहा था परिणय गीत लिखने को
संग-संग जीवन संगीत रचने को
मुड़ गयी राह तेरे लोचन संकेतों से
चल दी कलम प्रीत ग्रंथ लिखने को।
देख चमन प्रेम फुहारों का विहार
दो मालियों के दो फूलों का संसार
कितने सुंदर किसलय पंखुड़ियों का
सज्जित गुलमोहर का जीवन हार
अब हो गए दो हृदय एक स्पंदन
मन कर्म वचन की एक जकड़न
जीवन सुरभित अभ्यारण्य में
नहीं कोई चाहत न कहीं भटकन
चलो प्रिये अब प्रेम उषा अर्पण कर दें
यौवन दोफरी निशा को समर्पण कर दें
जब तिमिर आ जाये भटकें नहीं हम
आओ तपिश उच्छ्वासों का तर्पण कर दें।
@ बलबीर राणा "अडिग"
Hi
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