जय बोलो जय हिन्द की वो सबके साझेदार हैं
जय बोलो उन वीरों की जो वतन के पहरेदार हैं
चैन की नींद वतन सौता है जिन बीरों के पहरे में
हर घड़ी के जागरण से भी सिकन नहीं चेहरों में
अमन गीत वो गाते फिरते काष्ठ के उस जीवन में
माँ माटी का तिलक लगाया खाते पीते यौवन में
मोह मात्र, उस क्षितिज की जिसके वे ठेकेदार हैं
जय बोलो उन बीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।
देश खुशियों के खातिर जो खून की होली खेलते हैं
सरहद की अग्नि लपटों को सहज सीने पर झेलते हैं
युद्ध समर महायज्ञ में मृत्यु मंत्रों का जाप वो करते
बारूद समिधा की लो में होम अरि मुंडों का धरते
समग्र आहुती देते वे योद्धा तेज जिनकी धार हैं
जय बोलो उन वीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।
शीत लहरों की ठिठुरन हो या तपता रेगिस्तान हो
मेघों की बौछारें हो या चीरता बर्फीला तूफान हो
कदम नहीं लखड़ाते जिनके धूल भरी आंधियों मैं
शेर ए हिन्द मस्त मोले रहते हिमखंडी वादियों में
दुर्गम उतुंग हिमालय चौकियों के वे चौकीदार हैं
जय बोलो उन बीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।
पुकार त्राहिमाम पर संकट मोचन बन उढ़ आते हैं
अमोघ शास्त्र हैं आफत के झट प्रत्यंचा चढ़ जाते है
निज जीवन अभिलाषा उनकी टंगी रह जाती है
नहीं पता कब देह इनकी तिरंगे पर लिपट जाती है
माँ भारती के इन तपस्वियों को नमन हजार बार है
जय बोलो उन वीरों की जो वतन के पहरेदार हैं।
रचना : बलबीर राणा "अडिग"
बहुत सुन्दर सामयिक रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!
आभार बहनजी
हटाएंआभार आदरणीय
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