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शनिवार, 25 जनवरी 2020

करुणा व कर्म का संवाद



बॉर्डर पर खड़े बाप से मासूम बेटे का संवाद  हुआ
प्रेम करुणा और कर्म मीमांशा पर वार्तालाप  हुआ  
मासूम बेटा   फोन पर कहता पापा आप कैसे हो
पापा बोला   मस्त  हूँ बेटा  आप  जैसे  हैं वैसे  हूँ 

एक ओर मासूम चित  कोमल करुणा  में  दग्ध था 
दूसरी ओर फौजी  जिगर  अपने आप में  मग्न  था 
बेटे ने संसारिक व्यवहार पर खूब क्षोब व्यक्त किया
वहीं बाप ने क्षोबों को निष्काम भावों में जब्त किया 

पापा ठंड नहीं लगती कैसे उन हिमघरों में रहते हो
सुना  है  हवा  पानी  नहीं  वहाँ  कैसे आप जीते हो
उन ऊतुंग शिखरों पर बोझ लिए कैसे चढ़ जाते हो 
तेज धार बर्फीले तूफानों की टीस कैसे सह जाते हो  

क्यों सह रहे हो घनघोर कष्ट वहाँ आखिर किसके लिए 
क्यों खपा रहे हो जीवन  अपना आखिर  किसके लिए
अरे   नहीं  चाहिए पापा  मुझे  महंगे गुड्डे और  खिलौने 
मम्मा को बोलूंगा नहीं मांगेगी  महंगी  साड़ी और गहने

सभी कमा रहे दो जून की रोटी अपने खेत खलियानों में 
सुख नहीं देखा अपनों का  क्यों  पड़े  उन  बिरानो में 
पापा, भारत टुकड़े के नारे यहाँ अब रोज लग जाते हैं  
सब अपनी ही रोटी के लिए एक दुसरे से भिड़ जाते हैं 

फिर क्यों किसके पहरेदार बने हो उन कांटों की राहों पर
फिर क्यों चढ़े हुए हो किसी खूनी जेहादी की निगाहों पर 
आओ पापा घर आ जाओ मुझे शहीद का बेटा नहीं होना
नहीं रहना मुझे विधवा का बेटा,  मुझे  यतीम  नहीं  होना 

मासूम बेटे की बातों को सिपाही गौर से सुनता रहा 
ममतामयी  पैगाम  मासूम  का  मन  में  गुणता  रहा
कुछ  क्षण  दिल द्रवित हो उठा मोह में  अविचल सा
प्रेम की उस  नादान  पुकार से मन  कुछ  व्यथित सा 

कुछ ठहर कर उस शूर ने फोन पर बेटे को पुचकारा
एक एक कर मासूम बेटे को फर्ज का मर्ज समझाया
यह रोटी की लड़ाई नहीं है बेटा, फर्ज है माटी का
भारत माता के पुत्र हैं हम, यह  कर्ज है थाती का 

वो बेटा, बेटा नहीं होता जो माँ के दामन को बचा न सके
वो पुत्र क्या पुत्र है, जो बाप का भुज बल  दिखा न सके 
इस  मिट्टी  में  जन्में हर  पुरुष  का ऐसा भाग्य नहीं होता 
देश पर न्यौछावर होने का सौभाग्य सबको नहीं  मिलता

बात नहीं कष्ट सहने की ये तो कुछ भी नहीं है बेटा
विटप प्रकृति की विद्रुपता झेलना कुछ नहीं   बेटा
काष्ठ बन गयी यह काया बर्फीले आग से तप कर 
अटल बन गयी देह, भारत की जय माला जप कर 

हर पल तिरंगा उठाना   लहराना सबको नहीं  मिलता 
आखरी सांस का तिरंगे में समाना हर को नहीं मिलता 
हाँ आम इन्शान की तरह जिगर हमारा भी धड़कता है
अपनो के  साथ बिताने को मन हमारा भी चहकता  है

अन्दर कुछ न कुछ चलता रहता इससे कोई नाता नहीं 
घर के अंदर की बातों से हमारा कभी कोई वास्ता नहीं 
बाहर से कोई आँख न उठे उस आँख को हमें देखना है 
ज्यों ही आँख कोई  उठे राष्ट्र पर, उसे तत्क्षण भेदना है

चन्द खरपतवारों से धान की खेती छोड़ी नहीं जाती
वर्णसंकर के डर से भाईचारे की डोर तोड़ी नहीं जाती 
गात्र  वस्त्र  पर  उगे जुओं से यूँ ही  डरा  नहीं जाता 
जुओं को फेंका जाता है वस्त्र को त्यागा नहीं जाता 

मेरी चिन्ता मत करो बेटा अपनी पढ़ाई ध्यान से करो
अभी से अपने विवेक को  सच्चे भारत ज्ञान से गढ़ो
कल तुम्हीं को अर्जुन बनना है यहाँ गांडीव उठाना है 
तुम्हीं को कृष्ण बन किसी द्रोपदी की लाज बचाना है 

मैंने तो जीवन समर्पित किया भारत माता के चरणों में 
सजा रहे भारत माँ  आँचल सुखी पुष्पों की तोरणों में 
जीवन पुरुषार्थ खोज रहा हूँ राष्ट्र क्षितिज की रेखा पर
इस लिए गर्व है मुझे अपनी  इस कर्मपथ की मेधा पर 

सैनिक जीवन दर्शन सुनकर मासूम मन विह्वलित था
कर्मयोग की परिभाषा पढ़कर अंदर से आह्लादित था 
वचन दिया पापा को, करुणा की बातें अब नहीं करुंगा
अपने जीवन की लड़ाई भी अब इसी पथ जाकर लड़ूंगा। 

@, बलबीर राणा 'अड़िग' 

13 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ५ (चर्चा अंक -३५९२) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  2. बहुत ही सुंदर भाव संजोये बेहतरीन रचना । गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय

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  3. हर पल तिरंगा उठाना लहराना सबको नहीं मिलता
    आखरी सांस का तिरंगे में समाना हर को नहीं मिलता

    आपकी रचना के एक एक भाव को पढ़ते हुए दिल द्रवित हो उठा ,ऐसे ही कितने मासूम बच्चे जब अपने पिता के बगैर अपना बचपन गुजरते हैं तब हम यहाँ घरों में चैन से सो पाते हैं ,करुणा और कर्म का मर्म समझाती देश के सिपाही को समर्पित मार्मिक रचना ,सादर नमन हैं आपको
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. उत्तर
    1. आश्रीवाद बना रहे आदरणीय डॉ साब, आप मेरे पोर्टल पर आए कृथार्त हुआ।

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  5. दिली आभार आदरणीया अनुराधा चौहान जी।

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  6. हृदयस्पर्शी रचना
    रचना शायद इसी को कहते हैं ... लाजवाब

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