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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

बीस सौ बीस

बीस सौ बीस चला गया तू

चित्र विचित्र दिखा गया तू 

एक ही भेषधारी मानवों में 

देव दानवों को बता गया तू।


इतिहास तुझे जब याद करेगा

पुनरावृति न हो फरियाद करेगा 

देह अपनो के हाथ को तरसी थी 

निरीह निरासा के लिए याद करेगा। 


हाँ कुछ अद्भुत तू  दिखा गया

कुछ नव नीत रीत सिखा गया

चंद में भी निभ जाता जीवन 

राह संयम धैर्य की दिखा गया। 


सत रंगों से विलग तेरे रंग देखे 

कुछ पद छंदों में, कुछ भंग देखे 

नकली शोर सराबे से कुछ दिन

प्रकृति और प्रदत संग संग देखे।


साल बुरा नहीं था बनाया गया 

सरारती जाल में फंसाया गया

बुरे मुल्क के किये के सिले से

सबको भंवर में डुबाया गया । 


अब रुके आहिस्ता चलने लगे 

चेहरों के ढक्कन उतरने लगे

संकुचित वैभव की कलियाँ 

कुसुम बन चमन में फूलने लगे। 


चल अलविदा बीस बीस 

नहीं है तुझसे कोई रीस 

उतार चढ़ाव का है जीवन 

बुझती नहीं जिजीविषा तीस। 


31 दिसंबर 2020

@ बलबीर राणा अड़िग








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