मुश्कान बिखेरती झर-झर
किसलय कलियों अधरों पर
आहिस्ता दस्तक दे रोशन दान से
चुंबन देती गुड़िया कपोलों पर।
अलसाई तरुणी देह संकुचाती
चुपके छुवन आनन उरोजों पर
छूती अचला का हर कोना
ख्वळयाँस अंशु बेधड़क निडर।
चूं चूं चां चां की भोर वंदना
निकले विहग उर जतन पर
मुक्ता बन चमक रही ओश
नहीं उसको मिट जाने का डर।
@ बलबीर राणा "अडिग"
Adigshabdon

जवाब देंहटाएंमुश्कान बिखेरती झर-झर
किसलय कलियों अधरों पर
आहिस्ता दस्तक दे रोशन दान से
चुंबन देती गुड़िया कपोलों पर। ..प्रकृति की सुंदरता में खिलखिलाती सुंदर कविता । समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भ्रमण करें,आपका स्वागत है ।
धन्यवाद महोदया
जवाब देंहटाएंजरुर। आपको फोलो किया है । आशा है आपके तरफ से भी प्रतिउत्तर अनुसरण मिलेगा