धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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शनिवार, 31 जुलाई 2021
गजल : साँसों के टेंडर
रविवार, 25 जुलाई 2021
पहली गुरु
नहीं
आती थी उसे
गिनती
पहाड़ा
पर
!
उसने
जिन्दगी के हिसाब किताब में
कभी
गलती नहीं की ।
बैरीपन
घटाना,
दुनियां
की रीति नीति का भागफल
और
रिस्तों का गुणांक
वह
भली भांति जानती थी।
संसार
का रेखागणित ज्यामिति,
उसके
त्रिकोणमिती में कोण
हमेशा
समकोण रहते थे।
कंठस्त
था उसको,
गिरस्थी
वाणिज्य की तो वो
मजी
हुई वाणिज्यकार थी।
अ,
ब, स उसे काला अक्षर
भैंस
बराबर क्यों ना रहा हो
पर
! उसने
ना
कभी गलत गढ़ा,
ना
गलत पढ़ा, ना ही पढ़ाया ।
अशुद्धि
नहीं होती थी
ना
ही व्याकरण में त्रुटि,
क्योंकि
भाषा उसके
पय
से निकलती थी ।
उसके
नेह
के गीत कविता
होने
खाने के छन्द
व्यवहार
के मुक्तक
जीवन
पथ पर
दिशा
र्निदेशित करती हैं।
सहारा
बनती है
उसकी
सुनाई कथा कहानियां।
ठोकरों
से बचाती हैं
वे
एकांकी नाटक
जिसमें
वो स्वयं किरदारा रही हो
या
मंचन उसके करीब मंचित हुआ हो।
मनसा
वाचा कर्मणा से
अडिग
रहने का बल देती हैं
पुरखों
की जीवनियां, यात्रा वृतान्त
जिसे
वह काला टीका लगाते वक्त
मुझे
बताया करती थी।
और
मुठ्ठियों
से कूटते
अच्छी
तरह समझाई थी उसने मुझे
हमारी
रीति-रिवाज, देव-धर्म,
संस्कृति-संस्कार,
भलाई बुराई ।
समाजशास्त्र,
धर्मशास्त्र
सभी
जीवन शास्त्रों की जानकार थी
मेरी
पहली गुरु, शिक्षिका
मेरी
माँ लीला देवी राणा।
*
कंडाली - बिच्छू घास
चतौड़ - सेकना / पीटना