सरहद, सागर हर हद पर निगेहबान हैं,
चौकस हैं अरि अक्षि पर संधान हैं।
अडिग हैं आखरी लहू बूंद तक, न रंज ना राड़,
स्वर्गजित सुत, भारतमाता के जवान हैं।
धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
सरहद, सागर हर हद पर निगेहबान हैं,
चौकस हैं अरि अक्षि पर संधान हैं।
अडिग हैं आखरी लहू बूंद तक, न रंज ना राड़,
स्वर्गजित सुत, भारतमाता के जवान हैं।
अरुणोदय हुआ चला,
प्राची उदयमान हुई।
माँ भारती के स्वागत को,
राष्ट्र उमंगें वेगवान हुई।।
माघ की मंगल बेला पर,
तिरंगा शान से फहरायें।
गणतंत्र के महापर्व पर
प्रीत से जनगण मन गाएं ।।
महापुरूषों के स्वेद से,
मकरन्द यह निकला है।
योद्धाओं के सोणित से,
हमें लोकतंत्र मिला है।।
चित से उन महामानवों के,
बलिदान का गुणगान करें।
लोकतंत्र के महाग्रंथ का,
अन्तःकरण से सम्मान करें।।
पल्लवन इस वट बृक्ष का,
बुद्धि शक्ति तरकीब से हुआ।
तब इस सघन छाया में बैठना,
हम सबको नशीब हुआ।
ज्ञान, भुजबल परिश्रम से,
शेष दोष-दीनता दूर करें।
रिक्त है अभी भी जो कोष
चलो मिलकर भरपूर करें।
काम स्व हित संधान तक
यह लोकतंत्र का मान नहीं।
राष्ट्रहित निज कर्तव्यों को
आराम नहीं विश्राम नहीं।
जग में माँ भारती की,
ऐसी ही ऊँची शान रहे।
अधरों पर तेरे भरत सुत,
जय भारत का गान रहे।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
'चैन की नींद वतन सोता है, जिन वीरों के पहरे में'
- बलबीर सिंह राणा अडिग की पुस्तक 'सरहद से अनहद' का विमोचन
-कवयित्री शांति बिंजोला की सरस्वती वंदना से हुई कार्यक्रम की शुरुआत
देहरादून: युद्ध और साहित्य के मोर्चे पर एक साथ डटे बलबीर सिंह राणा 'अडिग' की पुस्तक 'सरहद से अनहद' का रविवार को धाद के बैनर तले मालदेवता स्थित स्मृति वन में विमोचन किया गया। इस मौके पर अडिग जी ने अपनी कविता 'चैन की नींद वतन सोता है, जिन वीरों के पहरे में' का पाठ भी किया। कार्यक्रम में गढ़वाल राइफल में कार्यरत राणा के साथी भी मौजूद थे।
साहित्यकार डा. नंद किशोर हटवाल ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि राणा अडिग जी बहुत संवेदनशील कवि हैं, जो अनुशासित सैन्य जीवन के बावजूद समाज की विसंगतियों को भी दृढृता के साथ अपनी कविताओं में बयां कर रहे हैं। साहित्यिक पृष्ठभूमि के न होने के बावजूद अडिग ने जहां अपनी कविता 'आड़' के माध्यम से मां भारती की रक्षा के लिए समर्पण की बात कही है, वहीं छुट्टी में घर आने और बच्चे को देखकर जो भाव मन में उमड़ते हैं, उसको भी खूबसूरती से कविता का लिबास पहनाया है। साहित्यकार देवेश जोशी ने कहा कि बलबीर राणा अडिगकी कविताएं कहीं से भी इस बात का बोध नहीं कराती कि वह साहित्य से अछूते हैं। ऐसा लगता है कि साहित्य उनके दिल में रचा-बसा है। भाषाविद् रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि राणा जी की कविताएं जीवन के बहुत करीब हैं। मुख्य अतिथि पद्मश्री जागर गायिका बसंती बिष्ट ने राणा जी को महिलाओं के जीवन पर भी कविताएं लिखने को प्रेरित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए धाद के केंद्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने अडिग की कई कविताओं का जिक्र करते हुए उन्हें संवेदनशील कवि बताया। इस मौके पर साहित्यकार शूरवीर रावत, कैप्टन धर्मेंद्र राणा, कैप्टन केदार सिंह, कैप्टन रामप्रसाद पुरोहित, कलम मियां, महिपाल सिंह कठैत, कलम सिंह राणा, सरोजिनी देवी, अंजना कंडवाल, रक्षा बौड़ाई, मनोज भट्ट, दर्द गढ़वाली, पुष्पलता ममगाईं, बीना कंडारी, अडिग जी के पारिवारिक लोग, ग्रामवासी, व साहित्य से जुड़े कई गणमान्य लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन शांति प्रकाश जिज्ञासू ने किया।