हर नजर और नजरिये का
अपने खातिर किरदार
अपनी परिभाषा है वह।
माँ, बहन, बहू, बेटी
हमसफर/दोस्त/साथी
सहचरी/सहभागनी
अर्धांगनी/बामांगनी
प्रिया/त्रिया वगैरा वगैरा।
लेकिन मैं देखता हूँ
इन किरदारों के मंचन में
जो विभन्न भाव भंगिमाएं,
कला मुद्राओं व वेशभूषा से
सज्जित जो मूर्ति बनी है
वह धरती जैसी है
जगत ढोने वाली धरती।
वह अचल/अडिग है
जिसमें धीर-थीर धैर्य है
जिससे जीवन उर्जित है
जिसमें संजीदगी है समांजस्य है
वेदना समन की शक्ति है।
इस परिपूर्ण सजल मूर्ति में
प्रेम, ममता, माया-मोह है
चपल मेधा मति है
चंचल किसलय इतनी कि
तनिक दुःख पर
विह्वलता, करुणा और
दया-धर्म पसीजता है।
उसमें नूर है आकर्षण है
निश्च्छलता है निर्मलता है
सौम्यता है सम्मोहन है
और वह विदुषी वाकपटुता है।
दानव समन को
रणचण्डी काली ज्वाला है
तेज तलवार कटार धारी
तीलू रौतेली, अहिल्याबाई
रानी लक्षमीबाई है ।
वह अबला नहीं सबला है
जल-थल, नभ पूरे ब्रह्माण्ड को
विजित करने का सामर्थ्य है
अनन्य शास्त्र व शस्त्रधारी
शक्ति स्वामिनी है।
वह कोयल कोकिला है
वीणा वादिनी संगीत साम्राज्ञी है
कलित कलाओं में
निपुण योगनी है।
साहित्य संस्कृति की सूक्ति है
लयात्मक छन्दबंध है
वन्धन मुक्त मुक्तक भी है
और सबसे बढ़कर
संतति का सम्पूर्ण जीवन ग्रंथ है।
वह ज्ञान ज्योति है
तिमिर में प्रकाश पुंज है
जीवन के हर कार्य में
प्रखर प्रवीण, दक्ष है ।
त्याग, अर्पण समर्पण व
सर्व गुण समपन्न
सुंदर जो ये कुट्यारी है
वह नारी है, वह नारी है।
कुट्यारी - गठरी
@ बलबीर राणा 'अडिग '