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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

गजल



जब भी मिलन हो मुखड़ी अनजान न लगे,

यादों के मेले में छुवीं विरान न लगे। 


जोड़ें दिल के तार, चंद लगे लम्हों में, 

धरती की अगली मुलाकात, आसमान न लगे। 


फ़िराक़ में रखें अपनापन रिश्ते ढूंढने को, 

मिले तो धुक-धुकी लगें बेजान न लगे। 


पगडंडियां, हाईवे, मोड़-सोड़ सब हैं सफर में,

अबेर-सबेर चलेगा, पर रफ्तार को विराम न लगे।  


उकाळ, उंदार वाले होते हैं प्रेम पथ अकसर, 

चलते रहना, कठिन लगे पर हारमान न लगे। 


पहेलियाँ बहुत हैं संसारिकता की पोथियों में,

सुलझा लो तो ज्ञान लगे अभिमान न लगे। 


बरकतों के बाग हरियाली हो झकमकार जब, 

तब जरूरत मंदों को वो रेगिस्तान न लगे। 


जज्बातों को संभाल कर रखना अडिग,

जब निकले बात लगे, बद जुमान न लगे।


*गढ़वाली शब्दों का अर्थ :-*

मुखड़ी – चेहरा। छुवीं – बातचीत। धुक-धुकी – धड़कती। अबेर-सबेर- लेट-पेट। उकाळ उंदार -चढ़ाई उतराई। झकमकार-लबालब। जुमान – जुबाँ। 


@ बलबीर राणा ‘अडिग’

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत खूब । अर्थ दे कर समझना सरल कर दिया । शुक्रिया।

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  3. पहेलियाँ बहुत हैं संसारिकता की पोथियों में,
    सुलझा लो तो ज्ञान लगे अभिमान न लगे।
    अति सुन्दर सृजन ।

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  4. पहेलियाँ बहुत हैं संसारिकता की पोथियों में,

    सुलझा लो तो ज्ञान लगे अभिमान न लगे... वाह!क्या खूब कहा सर 👌

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