1.
थी बल*, वह सुन्दर व महान भूमि
हैलो ईश्वर कहाँ है वह ?
कहाँ है उसकी सुन्दरता, महानता ?
थी बल*, वह सुन्दर व महान भूमि
हैलो ईश्वर कहाँ है वह ?
बल,
मेरे बाप दादाओं ने
अपने स्वेद से सींचकर
स्वर्ग बनाया था उसे ।
वह धरा
मेरे बाप दादाओं ने
अपने स्वेद से सींचकर
स्वर्ग बनाया था उसे ।
वह धरा
जीवन के लिए
अमृत थी
ऐसा इतिहास में मैने भी पढ़ा था।
ऐसा इतिहास में मैने भी पढ़ा था।
पुरखों के स्वेद से पल्लवित
धरती धधकी थी, बल,
सालभर बाद ।
टिड्डियों का झुण्ड आया था, बल
शोर मचाते झैं झैं करते
सबको चट कर गए थे रातोंरात,
मेरे बाप को भी
बिस्तर से उठा ले गई थी, बल,
वे टिड्डियां।
हमारी बारी आने वाली थी कि
टिड्डियों का झुण्ड आया था, बल
शोर मचाते झैं झैं करते
सबको चट कर गए थे रातोंरात,
हमारी बारी आने वाली थी कि
माँ मुझे छाती और
बहन को पीठ चिपका
भाग निकली थी
चुपचाप अंधेरे में जवाहर टनल से नीचे।
चुपचाप अंधेरे में जवाहर टनल से नीचे।
2.
जिस भूमि को लोग स्वर्ग कहा करते हैं
वह आग के बीच भागते जीवों वाला जंगल है
अब भी मुझे।
बीत चुका है युग कलित भूमि का
वहाँ आदमी हैं पर आक्रांत
भावनाएं है पर आक्रोश
आदमखोरों का आसरा
आज भी जस का तस ।
3.
ऊँचे हिम शिखरों से रिस रही होगी
चिनाव, झेलम,
सेब, बदाम के बगीचों कों,
बुढ्ढे दादा का रोपा चिनार
जवान ही होगा
डल झील में किश्ती वैसे ही
आहिस्ता सरक रही होगी,
4.
आज भी
पीर पंजाल, समसाबाड़ी, हिमालय
पर्वत मालाओं के बीच के
उस कटोरे में जीवन त्रासद है
डरता हूँ वहां जाने से
क्योंकि मेरे पूर्वजों के खंडरों में
खडग लिए अब भी छुपा है निशाचर
तिलक धारियों की टोह में।
5.
आँख खोलते ही चीख निकलती है
उस भयंकर आकृति को देख
जिसके हाथ में ऐके सैंतालीस है
वह आँखों से खून टपकाता दौड़ रहा है
शान्ति को मारने।
कैसे लौटूं वहाँ,
अब भी मुझे अजान की जगह
भाग जाओं सुनायी दे रहा है,
बताओं कौन दे रहा है गांरटी
कि मेरी माँ के जैसे मेरी पत्नी को
ना भागना पड़े अंधेरी रात में
नादान चूजों को छाती चिपकाये,
और
मेरी तरह
जीवन से बिदक ना जाए
ये
मासूम भी
ताउम्र के लिए
ताउम्र के लिए
मेरी उस छिन्न-भिन्न
खोपड़ी देख
जिस पर चेहरे की निशानियां
नदारद हों ।
* बल
गढ़वाली में बल शब्द का प्रयोग
- अन्यपुरुष कथन का भाव प्रकट करने में
- अपनी बात को जोर देने में
- प्रत्यक्ष ना देखने का भाव प्रकटीकरण में
- कथन की विश्वसनीयता पर संदेह
- कथा, कहानी व घटना सुनाने में
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
जिस पर चेहरे की निशानियां
नदारद हों ।
* बल
गढ़वाली में बल शब्द का प्रयोग
- अन्यपुरुष कथन का भाव प्रकट करने में
- अपनी बात को जोर देने में
- प्रत्यक्ष ना देखने का भाव प्रकटीकरण में
- कथन की विश्वसनीयता पर संदेह
- कथा, कहानी व घटना सुनाने में
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन 🙏
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अभिवादन शुभा जी
जवाब देंहटाएंबहुत ई हृदयस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएंबल ने थोड़ा भ्रमित कर दिया कि गढ़वाल में कौन सी जगह कश्मीर जैसे टिड्डों का आतंक फैला फिर समझ आया कि कवि रवि की तरह ...बल भी चल पड़ा साथ...आखिर गढ़वाली हैं बल ।
हार्दिक आभार सुधा देवरानी जी,
हटाएंबल हमेंर पच्छ्याण का बल है,
दूसरा कि यह दंश उस बाप का है जिसने यह त्रासदी सुनी है भोगी नहीं, इस लिए भी बल का इस्तेमाल, यानी अन्यपुरुष कारक में उचित समझा।
बहुत बढियां अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार भारती दास जी।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्ष जी
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर एवं यथार्थ चित्रण
जवाब देंहटाएं