अभाव में रखते सब, रघुनन्दन का भान।
भाव में जो भाव रखे, मनुज वही मतिमान।।
नाम यशोधन जग फले, फले वैभव तमाम।
गरूर ग्रहण ना लगे, रामा धन तू मान।।
हरीतिमा मिले आंगन, सुकरम राह सुजान ।
चरे चाकरी कुपथ जो, करे चौपट मचान ।।
चले चटकी चालाकी, रखे जब तक छुपाए।
चटख चटके चकड़ैती, राम दृष्टि ज्यूँ आए।।
प्रीति हो जब आफूँ से, वही राम लग जाए।
आत्म प्रीत जग प्रीत है, यही राम को भाए।।
राम नाम सत नाम है, सत है राम विधान।
और सब खंडित होवे, राम सत्ता तू जान।।
प्रेम भूख लागे अडिग, उदर भूख हो गोण।
सब तृष्णा से छक देवे, राम नाम की भौंण।।
शब्दार्थ :-
आफूँ - अपने से
भौंण - धुन
@ बलबीर राणा ‘अडिग’