गुरुवार, 30 मार्च 2023

अडिग दोहे


अभाव में रखते  सब,  रघुनन्दन  का भान। 

भाव में जो भाव रखे, मनुज वही मतिमान।। 

 

नाम यशोधन जग फले, फले वैभव तमाम।

गरूर ग्रहण  ना लगे, रामा धन  तू मान।।


हरीतिमा मिले आंगन, सुकरम राह सुजान ।

चरे चाकरी कुपथ जो, करे चौपट  मचान ।। 


चले चटकी चालाकी, रखे जब  तक छुपाए।

चटख चटके चकड़ैती, राम दृष्टि ज्यूँ आए।।


प्रीति हो जब आफूँ से, वही राम  लग जाए।

आत्म प्रीत जग प्रीत है, यही राम को भाए।।


राम नाम सत नाम है, सत है राम विधान। 

और सब खंडित होवे, राम  सत्ता तू जान।।


प्रेम भूख  लागे अडिग, उदर  भूख हो गोण। 

सब तृष्णा से छक देवे, राम नाम की भौंण।।


शब्दार्थ :-

आफूँ - अपने से 

भौंण -  धुन

@ बलबीर राणा ‘अडिग’

रविवार, 12 मार्च 2023

समय


अपने हिस्से के
मुट्ठी भर मेवों से
तीन चौथाई बचा के
रखता था अजय
हर रोज 
ताकि छः आठ महिने में 
बन सके दो-चार किलो,


जब उसे छुट्टी मिलती 
ले जाता था 
पीठ में लाद 
रम की बोतलों के बीच छुपाकर घर,


माँ खुश-ख़ुशी 
पूरे गाँव में पेणु बाँटती थी 
लैंची चणों के साथ,
गाँव बाहें भरके
दुलार प्रेम आशीष देता था
सरहद पर
अपने अजय के विजय होने का, 
था एक समय, 

है एक समय 
अजय वैसे ही बचाता है 
अपने हिस्से के मेवों को
वैसे ही छुपाते लाता है घर
पर
अब ना माँ को पता चलता
ना ही गाँव को 
क्योंकि
आज का अजय
गाँव नहीं शहर में
रहता है. 


पेणु - शुभ अवसर पर घर-घरों बांटे जाने वाला मिठाई या पकवान.


@ बलबीर राणा 'अडिग'

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मंगलवार, 7 मार्च 2023

होली आयी

 


पूरब से निकली किरण

अधरों पे मुस्कान लिए बोली

उठो अलस भगाओ, देखो बाहर

रंगों में रंग कर आयी होली।

 

अबीर गुलाल पिचकारी लेकर

खड़ी है हुलियारों की टोली

उल्लास बरस रहा है चहुँ ओर

बासंती फुहार लेकर आयी होली।

 

छोड़ो कल की बातें, गले मिलें

मेरा तेरा अब तक बहुत हो ली

मन का विश्वास दिलों में प्रेम

भाईचारा लेकर आयी होली।

 

रंगी है धरती रंगे हैं चौक चौबारे

सजी है बिलग रंगों की रंगोली

मधुमास है, पकड़ो प्रेम झर रहा है

आनंद की प्याली पिलाने आयी होली।

 

 @ बलबीर राणा अडिग

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