अरे परदेशी
उत्तराखंडी भुला
पिछने मुड़ी
मेरी बात सुणी ल्यावा,
कभी-कभार
बिरडा-बिरडी मेरु मुलुक घूमी आवा
मेरु गढ़वाल
घूमी आवा।
प्योंली जन
कोंल मंखियों कु दिल दगडी
बुरांश का रंग
मा फागुणे होली खेली जावा ।
चैता न बशंती
तें धे लगेली,
डांडा-काठियों
बटी, हर्याली ऐगे,
दिशाध्याणीयों
की, आशा कु मौल्यार
मैते की
माया मा लगिगे,
तुम भी एक
बुज्याडी कल्यो दे जावा,
दगडा-दगडी,
चान्चडी-झुमेलु, खेली आवा
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा।
सारियों मा
ग्युं की बालडी पकण लेगे,
काफल की
डाली झुकण बैठिगे,
बैसाख-जेठ का
घाम मा,
तुम भी, बांजा
का छैल मा हिंसर-किन्गोड, खे जावा
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा।
आशाड रगड़-बगड़
मा चलिन,
स्कुलियों की
मांग ना, ब्वे-बुबा की नींद हरचिन,
सोण-भादों
की रिम-झिम बरखा मा,
तुम भी
भीजी जावा,
छवाया
मंगरों कु पाणी पी जावा,
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा।
डोखरा पुंगडी
मा लो मानण लगीनी,
बाड़ी-सगोडी
कखडी-मुंगरी ल भरीनी,
असूज श्राध
ऋतू मा पितरों का खातिर,
तुम भी
अपणी श्रधा तर्पण कैर ल्यावा,
कुछ पुण्य
कमे जावा,
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा।
दशेरा-बग्वाल
कु मैना लगीगे,
गौं-ख्वालों
मा रामलीला कु सबत बजिगे,
ठंडी बथों
की ससराट मा, भेलो खेली जावा,
पूरणों की
जगयीं संस्कृति की जोत,
बुजण न
द्यावा, बुजण न द्यावा,
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा।
ढोल दमों
का भिभडाट का बीच,
मसुक बाजे
की तान सुणण लगिगे,
ब्योली-ब्योला
कु ज्वान ज्यू धड़कण बैठिगे,
मंगशीर मा
बरातियों का न्युतेर बणी आवा,
दीदा-भूलों
का ब्यो मा स्याली की गाली खै जावा,
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा।
डांडी-कांठी,
ह्युं ला ढकी न,
पूस-मौ मा
उबरा-उबरी छुंवी लगेनी,
भट-बुखणा
की कटड-कटद दगडी,
द्यब्तों
का मंडाण मा जागरियों की गाथा सुणी आवा,
अपणा विकाश
का दगडी,
ये पलायन
का ओडाल रुवेकी जावा,
बलबीर भैजी
का अडिग शब्द सुणी ल्यावा,
बिरडा-बिरडी
मेरु मुलुक घूमी आवा,
मेरु गढ़वाल
घूमी आवा।
१३ अप्रेल
२०१३
गीतकार :
बलबीर रणा “भैजी”
© सर्वाध
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