रिश्तों के अटल सरोवर में,छिद्र क्यों हुआ जा रहा आज?
प्रीत का र्निमल नीर, क्यों रिसने लगा आज?
प्रेम के अटल पाषाण से र्निमित जलज,
जर्जर क्यों हुआ जा रहा आज?
एक ही ओट-गोट के जातक
प्रेम-पास से बेलगाम हो रहे,
दुनिया तो,एक ओर है
अपने ही नातों से दूर हाते जा रहे है,
अपने ही लहू की पीडा में,ये कैसा
औपचारिकता का मलहम लगने चला आज?
अंधड मे मानवता, आँख बन्द किये खडी है,
दूर से आवाज दे, कर्मों की इतिश्री हो रही है।
बेप्रीत की रेत से, यह सरोबर भरने चला आज,
ममता के कमल दल लुप्त होने चले आज।
29 जनवरी
2012
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