संसार के मायावी बन में,
गतिशील जिन्दगी की भटकन,
प्रेम, सुख की चाह में भ्रमण
सरोवर, सागर, गागार,
नदी, नीर श्रोतों का किया विहार
ईच्छा की देवी की नहीं भुजी प्यासा ।
जीवन की बाती
छोटी हुई जाती,
सूख गया तेल,
धूमिल पडी लो,
प्रेम पास का पांसा नहीं होता ढीला ।
मौत छुपायी लोभ दिखाया,
बिधाता ने भी क्या खेल रचाया,
चार दिनो का रंगमंच सजाया ।
12 मार्च 2013
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