गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

वीर गढ़वाली जवान



जीवन का नेह निचोड़ गीत मातृभूमि के गाता है 

तिरंगे वसन का प्रेमी वह शौर्य विजय की गाथा है 

मौन क्षितिज चारों दिशाओं पर पूरा हिंदुस्तान है 

भारत की शान है, वो वीर गढ़वाली जवान है ।


बावन गढ़ों की गढ़भूमि से जब कोई कंचन निकलता है 

असाधारण सैन्य साधना से कालौं डांडा तपता है 

निकलता फिर देश विदेश में शौर्य अपना दिखाने को 

हर समर हर युद्ध भूमि पर छाप अपनी छोड़ता है 

प्रथम विश्व युद्ध से वर्तमान तक गढ़े कई प्रतिमान है 

भारत की शान है, वो वीर गढ़वाली जवान है ।


वीर दरवान गबर जसवंत के देश का वासी है 

सघन वन दुर्गम ठौर प्राचीर प्रहरी सन्यासी है 

भय न खाता झंझावतों से न फिक्र करता तुफानो की

कीट कीकर में फंख खोल उड़ने का अभ्यासी है 

राष्ट्र रक्षार्थ कर्मवेदी पर रचा गया वो एक विधान है 

भारत की शान है, वो वीर गढ़वाली जवान है ।


क्यों न दुःख कराल कष्टों भरा उसका जीवन संसार रहे

चाहे समर भूमि में धधकता शोला हाहाकार रहे

युद्धाय कृत निश्चय: आदर्श सर माथे पर रखता है 

बद्री विशाल लाल की जय का, जय घोष करता है 

रेड लाईन यार्ड वर्दी धारी औरों से जो परे पहचान है 

भारत की शान है, वो वीर गढ़वाली जवान है ।


गम नहीं आहुत होने का भारत माँ तेरा प्रताप रहे

उन्नत बुलंद हो भारत मेरा, इस भुव अमिट छाप रहे 

पहाड़ी पुत्र है सिंहनाद कर अरि मांदों पर झपटता है 

शपथ लेता पुनीत गीता की गीत शौर्य के गाता है 

राष्ट्र सुख शांति निमित वह एक कवच है परिधान है 

भारत की शान है, वो वीर गढ़वाली जवान है ।



रंचना : बलबीर राणा 'अड़िग'

बुधवार, 11 सितंबर 2024

गजल

 

अपना कहने भर से अपनापन नहीं मिलता,

यार कहने वाले सब में याराना नहीं मिलता।


करते हैं सब ठोक बजा कर्म इस कर्मभूमि में,

लेकिन किये का सिला सबको नहीं मिलता।


हैरानी होगी परिणाम अनुकूल न निकलने पर, 

परेशान होने से भी तो आराम नहीं मिलता। 


राहों में बहुत मिलेंगे जो मन को भाएंगे।

केवल मन भाने से भाव नहीं मिलता। 


हीरे तो भतेरे निकलते हैं खदानों में हर रोज, 

लेकिन चमकने का नशीब सबको नहीं मिलता।


कुछ बातें काबू से बाहर की भी होती अडिग, 

जाने दे बेकाबूओं को ठौर नहीं मिलता।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

सोमवार, 26 अगस्त 2024

कृष्ण वंदना



देवकी वसुदेव नन्दन कृष्ण चंद वंदनम

धरा सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

घोर घटा श्रावणी स्याह रात्रि आगमनम
जगदीशश्वरम विष्णुबिपुलम् सुंदरम् 
मोर मुकुट मुरलीधर चंचल मृदुचपलम् 
सहस्र वन्दन हे सारथी यशोदा-नन्द नन्दनम् 
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।

पावन बाल चरित नटखट गोकुलधामम् 
गोपीयों संग रांस रचित प्रीत वृन्दाबनम् 
कृत्य अचंभितम्  मायावी पूतना बधम् 
इन्द्र दम्भम चूर-चूरम हस्त गिरी गोवर्धनम् 
धरा अति सुशोभितम्अ भिनन्दनम् बिन्दम् 

पीताम्बर कण्ठ वैजयन्ती स्वर्ण कुंडल शोभितम् 
अधर मधुर मुरली हस्त विराजे चक्र सुदर्शनम् 
काली नागनथनम कंसकाल कवलितकम् 
धरा शुचि संकल्पम प्रभुदहन पापनाशकम् 
धरा अति सुशोभितम्  भिनन्दनम् बिन्दम् ।

स्वर्णिम उषा सुखद निशा बृज भूमि आनंदम् 
तिमिर लोप, जहां विराजे कण-कण राधेश्वरम् 
हर मन-हृदय वसियो यशोदा श्यामा सुकोमलम् 
राधा रुकमणी जिगर योगेश्वर बृजभूषणम् 
धरा अति सुशोभितम्  भिनन्दनम् बिन्दम् ।

अद्वितीय बलम पांडव दलम रण महाभारतम् 
पार्थ सारथी कुशल नेतृत्वम युद्धम कुरुक्षेत्रम् 
गीता अमृतम अमूर्त पवित्रम मनु आजीवनम् 
सर्वत्र व्याप्त प्राणी-प्राण, भूतभविष्यम केशवम् 
धरा अति सुशोभितम्  भिनन्दनम् बिन्दम् ।

सदमति दे हे महांबाहो उत्थान दे सर्वेश्वरम
ज्ञान क्षशु प्राकाश दे सद्भाव वत्स वत्सलम
हिन्दसुत कर्मप्रधान हो सुर-शोर्य आत्मबलम
रक्ष दक्ष परिपूर्ण सुपुष्ठम जग श्रेष्ठ हो भारतम
धरा अति सुशोभितम्  भिनन्दनम् बिन्दम् ।

@  बलबीर राणा 'अडिग'

गुरुवार, 15 अगस्त 2024

भारत का गान






अरुणोदय हुआ चला,

प्राची उदयमान हुई।

माँ भारती के स्वागत को,

राष्ट्र उमंगें वेगवान हुई।।


श्रावणी मंगल बेला पर,

तिरंगा शान से फहरायें।

स्वतंत्रता के महापर्व पर

प्रीत से जनगण मन गाएं ।।


महापुरूषों के स्वेद से,

मकरन्द यह निकला है।

योद्धाओं के सोणित से, 

हमें लोकतंत्र मिला है।।


चित से उन महामानवों के,

बलिदान का गुणगान करें।

लोकतंत्र के महाग्रंथ का,

अन्तःकरण से सम्मान करें।।


पल्लवन इस वट बृक्ष का,

बुद्धि शक्ति तरकीब से हुआ।

तब इस सघन छाया में बैठना, 

हम सबको नशीब हुआ।


ज्ञान, भुजबल परिश्रम से,

शेष दोष-दीनता दूर करें।

रिक्त है अभी भी जो कोष 

चलो मिलकर भरपूर करें।


काम स्व हित संधान तक

यह लोकतंत्र का मान नहीं।

राष्ट्रहित निज कर्तव्यों को

आराम नहीं  विश्राम नहीं।


जग में माँ भारती की,

ऐसी ही ऊँची शान रहे।

अधरों पर तेरे भरत सुत,

जय भारत का गान रहे। 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

मटई चमोली।

उत्तराखंड

रविवार, 4 अगस्त 2024

दोस्ती



जिंदगी का एक ईनाम है दोस्ती,

बिंदास जीने का पैगाम है दोस्ती। 


मित्रता में छोटा-बड़ा नहीं कोई, 

इसी अहसास का नाम है दोस्ती।


लड़कपना सा रूठना लड़ना झड़गना, 

फिर मिलके हुदंगड़ सरेआम है दोस्ती।


खट्टा कसैला तीखे से उपर उठा, 

कच्चे से पका मीठा आम है दोस्ती।


भूले बिसरे हुए जो जीवन की भीड़ में, 

उन्हीं बिसरों से अभिसार आयाम है दोस्ती।


निभाने की खानापूर्ति तक नहीं सिमित, 

संग लड़ने खपने वाला संग्राम है दोस्ती।


अनैच्छिक औपचारिकता का मुंडारा चहुँ ओर, 

अडिग उसी मुंडारे का बाम है दोस्ती।


*शब्दार्थ :-*


अभिसार - आगे बढ़कर 

आयाम - विस्तार 

मुंडारा - सर दर्द


@ बलबीर राणा 'अडिग'

ग्वाड़ मटई वैरासकुण्ड

शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

जीवन फ़साना



खुशियों का आना संताप का जाना
संताप का आना खुशियों का मुरझाना
कभी उन्माद का ठहाका लगाना
कभी उम्मीदों का दहाड़ मार रोना
बस इतना ही है जीवन फ़साना

पाने पहुँचने को संघर्षरत रहना
संघर्षों का कुछ कदम चढ़ना कुछ फिसलना
कभी लक्ष्य पाना कभी चूक जाना
गिरने उठने का क्रम लगे रहना
आशा-हताशा का लुक्का-छुपी खेलना
बस इतना ही है जीवन फ़साना।

मेरा-तेरा विषयों से घिरे रहना
विषयों का गतों में विभक्त रहना
कुछ को अंगीकृत, कुछ को तिरस्कृत करना
कुछ का संजीवनी कुछ का गरल होना
जीवन पर्यन्त पथ्य और पथ को खोजना
बस इतना ही है जीवन फ़साना।

एक उम्र में प्यार का मुफ्त मिलना
एक उम्र में प्रयत्न पर पाना हथियाना
एक उम्र में अनुनय विनय कर मांगना
ताउम्र मोहमाया में निमग्न रहना
अंतकाल तक मोहपाश का ना छूटना
बस इतना ही है जीवन फ़साना।

फ़साना - किस्सा / कहानी

@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
01 अगस्त 24

गुरुवार, 1 अगस्त 2024

घर




घर मनुष्यों का समूह नहीं
ममता का संगठन होता है
घर मात्र एक मकान नहीं
घरवालों का जिगर होता है

घर केवल आश्रय नहीं
संतोष सकून का मंदिर होता है
जहाँ परिजनों का परिश्रम देव
चैन की निद्रा सोता है।

घर के लिए
प्रीत का मलहम चाहिए,
महल नहीं.

प्रेम पीड़ा का निवाला चाहिए
महाभोग की थालियां नहीं

तन आवरू ढकने को वस्त्र चाहिए
महंगे शूट बूट नहीं

मन दान को दाने चाहिए
मेवे मिठाईयां नहीं

एक दूजे की गोद में लेटने को कुछ जगह चाहिए
पृथक कमरे नहीं

मकान कहीं भी हो सकता
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक 
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
जो श्रद्धा की पाती मांगते हैं
तर्पण के रूप में
और वे घर की चिरायु समृद्धि
के लिए देते हैं
आशीष क्वथळी भौरी कि।

@ बलबीर राणा 'अडिग'