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धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
रविवार, 26 अप्रैल 2015
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मनुष्य निर्माण नहीं मशीनों का निर्माण
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बुधवार, 8 अप्रैल 2015
गुणों का बाजार
गुणों का बाजार
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सुना था
गुण और ईमान
एक दूसरे के पूरक होते है
ईमान बिकता नहीं
परन्तु
गुण बिकने लगे हैं
करोड़ों की बोली लगी है
अब !
मैं गरीब
गुण खरीदूं कैसे खरीदूं
गुण भी
अमीरों के हो गए।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
मुठ्ठी भर सुख
बस? मुठ्ठी भर सुख
और ! बक्सा भर दुःख
उठा लाया , फिर क्यों बोझ ढोने को रोता है
धतूरा जो तु बोता है।
समेटा है संभाल
मुँह चुरा न भाग
अमानत तेरी, मुझे क्यों उठाने को कहता है
घडी- घडी प्रार्थना करता है।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'
मंगलवार, 7 अप्रैल 2015
चींथडों में अपनापन
गरबी तू ही अच्छी थी
चींथडों में मेरे अपने
मेरे आगोस में हुआ करते थे
महलों की मखमली चादर
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा
जो तु मेरे अपनों को
मुझसे छीन ले गयी।
रचना:-बलबीर राणा "अडिग"
गुरुवार, 2 अप्रैल 2015
दीमकी हमला
अब कोई आशा ही नहीं ?
बचने का रास्ता ही नहीं
सुना था परमाणु हमला
तीन पीढ़ियों को विक्लांग करता
लेकिन ये कौन सा हमला हुवा
जो पूरे युग को विक्लांग कर गया
इतिहास के किसी भी पन्ने पर
ऐसा आहिस्ता दीमकी हमला अंकित नहीं देखा
जो धीरे धीरे कुरेद जड़ नष्ट कर दे
और आने वाली पीडी
जीवन भर दूसरी संस्कृति की वैशाखी पर
चलने को मजबूर हो।
जागो भारत जागो
मत इण्डिया बन कर भागो
हिन्दी बचेगी बचेंगा भारत भी
बचेंगे हम भी।
चिंतन :- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित "अडिग शब्दों का पहरा"
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