गुणों का बाजार
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सुना था
गुण और ईमान
एक दूसरे के पूरक होते है
ईमान बिकता नहीं
परन्तु
गुण बिकने लगे हैं
करोड़ों की बोली लगी है
अब !
मैं गरीब
गुण खरीदूं कैसे खरीदूं
गुण भी
अमीरों के हो गए।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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