सोमवार, 30 जुलाई 2012

शांति खोजता रहा





शांति की खोज
शांति खोजता रहा
धरती  के  ओर  चोर  भटकता  रहा
कहाँ है शांति
कहीं  तो  मिलेगी 
इस चाह  में  जीवन  कटता  रहा 

समुद्र की गहराई  में गोता लगाता रहा 
झील की शालीनता को निहारता रहा
चट्टाने चडता रहा 
घाटियाँ उतरता रहा
पगडंडियों  में संभालता रहा
रेगिस्तानी  में धंसता रहा

कीचड़ में फिसलता रहा
बन उपवन में टहलता रहा
बागग- बगीचे फिरता रहा
हरियाली घूरता रहा

जेठ की दोपहरी तपता रहा
सावन की बोछारों में भीगता रहा 
पूष की ठण्ड में ठीठुरता  रहा
बशंती बयारों में मचलता रहा
फूलों की महक से मुग्द होता रहा 

मंदिर, मस्जिद में चड़ावा चडाता रहा
मन्त्रों का जाप करता रहा
कुरान की आयत पढता रहा
 
गुरुवाणी गाता रहा 
गिरजों में प्रार्थना  करता रहा

सत्संगों में प्रवचन सुनता रहा
धर्म गुरुवों के पास रोता रहा
टोने टोटके के भंवर में डूबता  रहा
उपवास पे उपवास रखता रहा
जात -पात, उंच- नीच के भ्रमजाल में फंसता रहा 
बहुत दूर...... दूर चलता गया
पीछे मुड़ा
हेरानी !!!!!! ओं... 

जीवन यात्रा का आखरी पड़ाव !
सामने देखा …….
रास्ता बंध.
लेकिन मन,
अभी अशांत ... निरा अशांत

वही बैचेनी
वही लालसा 
मोहपास जाता नहीं
मेरे -तेरे  का भेद मिटता नहीं 

तभी एक आवाज  आई
में शांति,........
कभी अंतर्मन में झांक के देखा?
क्यों? मृगतृष्णा में  भटकता रहा
कश्तुरी तो तेरे अन्दर ही थी
अब पछ्ता के क्या करे
जब चिड़िया चुक गयी खेत.
आज बेसहाय ... निरा बेसहाय


बलबीर राणा (भैजी
बैराशकुण्ड  (मटई  ) चमोली गढ़वाल  उत्तराखंड   





बुधवार, 25 जुलाई 2012

चौराहे पर खड़ा हूँ

चौराहे पर खड़ा हूँ
आज के वैज्ञानिक युग में टेक्नोलोजी ने जीवन को जहाँ आशान बना दिया वहीँ देश दुनिया और समाज में फैलती असामाजिकता , ऊंच -नीच और धर्म -संप्रदाय के भ्रमजाल में आम जीवन चौराहे पर खड़ा जैसे महसूस हो रहा है


किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ

सुगम मार्ग कोई सूझता नहीं
सरल राह कोई दिखता नहीं
कौन  
है हमसफ़र
आवाज कोई देता नहीं
किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ

इस पार और भीड़ भडाका
उस पार सूनापन
एक और शमशान डरावन
एक और गर्त में जाने का दर
डर लगता
किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ

यहाँ सब भ्रमित
सब व्यस्त समय का अभाव
गंतव्य अंत नहीं
ठहरता कोई नहीं, धेर्य नहीं
किस से पूंछू
किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ

पहले से सब पथ विसराये
दिशा हीनता
चारों दिशाओं में गतिशील
तेज से अति तेज गति
होड़ लगी है पंक्ति में खड़े होने की
मंजिल का छोर कहाँ
किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ 


जात -पात, धर्म- सम्प्रदाय का भंवर
ऊंच- नीच का झगडा
दलित
श्रवन खींचतान में
उलझे हुए उलझन है की उलझती जाती
एक के बाद एक गंठिका
किससे खुलवाओं किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ

ताड़ ताड़ होती मानवता
भाई भ्राता स्वार्थ तक
कौन  
किसको कहाँ पर ठग ले
मर्यादा का कोई मान नहीं
जी घबराता
किधर जाऊं
चौराहे पर खड़ा हूँ

मानुष से अमानुष बनाने का पाठ पढ़ाया जा रहा
प्रीत पराई हो गई
केवल
रह गया मतलबराम
अपनी ढपली अपना राग
सब बजाते जा रहे
कैसे नाचूँ
चोराहे पर खड़ा हूँ


एक तरफ लूट डकैती
दूजे ओर नक्सलवाद
तीजे तरफ भ्रष्टाचार
और चौथे 
ओर आतंकवाद
किधर जाऊं
चोराहे पर खड़ा हूँ


बलबीर राणा (भैजी)

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

अमानुष बना कैसे



अमानुष बना कैसे
मा ने प्यार दिया
पिता ने दुलार 
भाई  ने साथ दिया 
बहन ने आभार 
अमानुष बना कैसे 

 समाज ने एकता दी 
जाती ने अपना पन 
धर्म ने सत मार्ग दिया 
वेद पुराण कुरान बाईबल ने मानवता 
फिर अमानुष बना कैसे 


 रीf रिवाजों ने अनुसरण दिया 
इतिहास ने पुनरावृति 
गुरु ने ज्ञान दिया 
ग्रंथों ने सन मार्ग 
फिर अमानुष बना कैसे 

हिमालय ने अडिगता दी 
समुद्र ने शालीनता
शहरों ने जीवन्तता दी 
बनो ने समाविस्ठ्ता 
फिर अमानुष बना कैसे  

संगिनी  ने  प्रेम  दिया ,
पाल्यों ने वात्सल्य .
मित्रों   ने  साथ  दिया , 
नाते  रिश्तों  ने  सहानुभूति .
फिर  ये  अमानुष बना कैसे 


बसंती  बयारों  ने  महकना  सिखाया  ,
सावन  की  बोछारों   ने  शीतलता .
हेमंत  ने  एकरूपता  सिखाई ,
शिशुर  ने  दृढ़ता .
फिर  ये  अमानुष बना कैसे 

पगडंडियों  ने  संभलना  सिखाया , 
 पथ  ने  अनंत दी यात्रा    ,
झीलों  ने  धेर्य  सिखाया ,
झरनों  ने  मोहकता .
फिर  ये  अमानुष बना कैसे 

सूरज  ने  रोशनी  दी ,
चंदा  ने   शीलता  .
नभ  ने  ,छत दी ,
धरा  ने  आश्रय .
फिर  ये  अमानुष बना कैसे 

विज्ञानं  ने  तरक्की  दी , 
साहित्य  ने  समझ .
कवियों  ने  कल्पना ’kfDr  दी ,
उधमियों  ने  रोजगार .
फिर  ये  अमानुष बना कैसे 

भाषाओं  ने  व्यवहार  दिया ,
बोलियों  ने  पहचान .
देश  ने   संप्रभुता 
विश्व  ने दिया  बन्धुत्वा .
फिर  ये  अमानुष बना कैसे 

बलबीर राणा (भैजी