बर्फीले तूफान के आगे
अघोर जंगल के बीच
समुद्री लहरों के साथ ,
पर्वत की चोटियों पर
अडिग खड़ा हूँ
मा की ममता से दूर
पिता के छांव से सुदूर
पत्नी के सानिंध्य के बिना
पुत्र के मोह से अलग
अडिग खड़ा हूँ
दुश्मन की तिरछी निगाहों के सामने
देश विद्रोहियों के बीच
दुनिया समाजसे अलग
बिरान सरहदें
अडिग खड़ा हूँ
रेगिस्तान के झंजावत में
कडकती बिजली के नीचे
मुशलाधार मेघवर्षा
जेठ की दोपहरी में
अडिग खड़ा हूँ
बिरानियों के अवसाद में
बम वर्षा की थतटराहत
गोलियों की बोछारें
आदेशों के प्रहार में
अडिग खड़ा हूँ
न जाती न धर्म मेरा
न समाज न सम्प्रदाय
बस अडिग
सैनिक जाती धर्म संप्रदाय मेरा
मा भारती की रक्षा में
अडिग खड़ा हूँ .......बलबीर राणा (भैजी)
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