शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

दीदार



आज फिर आँखें चार हुई हैं
पलकों ही पलकों में बात हुई है
बंद होंठ खुले भी नहीं
जी भरकर वार्तालाभ हुई है
एक झलक देख लेने से ही
एक दूसरे  के दीदार हुए हैं

  बलबीर राणा "भैजी"

20 अकटूबर  2012

तृप्त जीवन



नश्वर ही, तो है ये जीवन
क्यों भटकते हम मृग तृष्णा में,
तृष्णा जो जीवन भर बुझती नहीं
तृष्णा !!!!!
मात्र लोभ लोभान्वित।
भटक रहा जग, सारा
खो रहा जीवन मूल्य,
मुठठी बांध के आये हैं,
मुठठी खोल के जायेगें।
यही सास्वत, सत्य
जिसे कोई कानून की किताब नहीं झुटला सकती।
ये भी, तो... कलयुग के देवदूत हैं
जो इस सत्य को जीत रहे
उस परमबह्म के प्रेम में
तृप्त जीवन पा रहे।
………. बलबीर राणा "भैजी"
20 अटूबर 2012

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

हंसी


फूलों की बगिया के खिलते
फूलों की मोहकता है हंसी
मुख के आभा मंडल की
अभिव्यक्ति है हंसी
होंठ और आँखों की शोभा बन,
अनमोल औषधी है हंसी
मन के दर्पण की स्वच्छता को प्रर्दषित करती है हंसी
अनकहे शब्दों के चित्र को प्रतिबिम्बित करती है हंसी
खुशी की अभिव्यंजना को उकेरते हुए,
आत्मिक सुख की अनुभूति है हंसी
दर्द की पीडा कम करती हंसी
मन्द मूकता में,
दो दिलों के मिलन का सेतु बन जाती हंसी
अनचाहे दुखः के भय को
सुख में समाहित करती हंसी
ना कह कर भी, बहुत कुछ
कह देती है हंसी
बेवजह की बत्तीसी की चमक
उपहास का द्योतक बन, 
पागलों की परिभाषा बन, जाती है हंसी
हंसना जरूरी है जीवन में
ध्यान रहे कुटिल हंसी, ना हंसना भैजी
नहीं तो तेरी हंसी मेरी हंसी को रूला देगी
………………बलबीर राणा भैजी
19 अक्टूबर 2012  

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

पर्वत की टीस



सहस्रों जुग देखे मैंने
अजातशत्रु बन अजर अमर
सदियों से जी रहा हूँ।
काल के काल कलीकाल बनते गये
कल्पों का कोलाहल सुनके भी
मूक सहिष्णु बना रहा।
ना टुटी तन्द्र मेरी
ऐसा ही निशब्द खडा रहा।
अथाह धैर्य शनेः शनेः अनश्वर बनता रहा
धरा की अकुलाहट देख भी
भावना की पाती में ना बहा।
प्रकृति के अकुलाहट में
मोन मेरा पराजित ना हुआ।
कभी कभी जीवित अडिगता मेरी
चित को कटोचती
तुम क्यों भ्रमित हो
पर्वत में भी अचल दिल धडकता।
मानव की विभित्सिका और अधम देख
प्रलय के आँसू रोता।


मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

माँ यही अराधना करूं



माँ तुझसे क्या मांगू
सुख शांति या सम्पन्ता
सुख तो विसंगितयों ने छीन लीया
शांति चक्काचौध में विलुप्त हो गयी
चलो सम्पन्ता का पाठ करूं
सम्पन्ता!!!!!
वो तो मंहगाई में घिसट रही
आज तेरे इस पावन पर्व पर
तेरे नौ रूपों का जाप कर
यही आकांक्षा करूं
रक्षा अपने वतन की करने में
अपने सच्चे कर्मों का र्निवहन कर
आदिशक्ति तुझ से यही अर्चना करूं
न भटके ऐसी राह पर कदम मेरे
उस राह से ये जीवन ना कलंकित करूं
अपने कर्म पथ पर अडिग हूँ
अडिग रहूँ
माँ यही अराधना करूं
…………बलबीर राणा भैजी
16 अक्टूबर 2012

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

बिछडा पंछी


बिछडा पंछी
आज फिर उदास है
दिल के धडकन की आवाज
घोंसलें के आस पास है
मन के सहस्रों सवालों का
जबाब नहीं किसी के पास है

शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

प्रकृति का दर्पण



प्रकृति के दर्पण में
जब चेहरा जीवन का देखा।
देखा।सुखों का भंडार इस आँगन में।
स्वच्छ निर्मल छटाओं में
प्रतिबिम्बित मन का कोना देखा।
क्षण में काफूर होती देखी
सारी कुंठाएं।
देखी !!!! सुगम और मनोरम
प्रेम पथ की डगर।
इस आईने के प्रतिबिम्ब मे
इसका उलटा भी,
उतना ही सत्य देखा।
भैजी ..... तु किस दृष्ठी से देखता
यह तेरी नजर और नजरिया है।
प्रकृति का यह दर्पण हमेशा 
स्वच्छ और साफ रहता।  

……………..बलबीर राणा "भैजी"
13 अक्टूबर 2012


शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

कौतुक बरकरार

हर्षित प्रसंचित 
धरा की विह्ंगमता देख 
मन उमंगित 
पर !!!! कौतुक बरकरार 
क्यों ? नहीं हमारे मन 
इस धरती की तरह मनोरम और निर्मल होते…

आज रो रही है माँ


आज रो रही है माँ
अपनों के लिए तरसती है माँ
नियति के क्रुर मजाक पर
बिरह की हँसी हँस रही है माँ
नो महिने कोख में सींचा जिसे
उसी के आक्रांत से 
आज इस कोख को कोसती है माँ
आज रो रही है माँ

मातृत्व धर्म निभाया था माँ ने
इन पौधों को हाथों हाथ उगाया था माँ ने
स्तनों से प्रेमपान कराया था माँ ने
सुन्दर कल की चाह में
निराया गुडाया था माँ ने
आज इसी कल से व्यथित है माँ
आज  रो रही है माँ

प्रीत आज प्रतिकार हो गयी
अपनो से ही धिक्कार दी गयी
जिस दुखः बिपदा ले के जीवन से लडी थी
आज फिर उस बिपदा की ललकार सुन रही है माँ
अपनो के लिए आँशुं बहा रही है माँ
आज  रो रही है माँ

अपने मन को मार कर
अपने तन को काट कर
खुद रूखा सुखा खा कर
बेटे को तला रस खिला कर
ममता की छांव में संवारती रही  
आज उसी ममता के दग्ध से दग्धित है माँ
आज  रो रही है माँ

……….बलबीर राणा "भैजी"
०२ अक्तूबर २०१२  

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

२ अक्टूबर की काली रात


उत्तराखंड आन्दोलन "मुज्पफर नगर काँड" की याद  मेरी डायरी के पन्नो से 
 अक्टूबर की वो काली रात 
उत्तराखंडीयों  के लिए 
काल बन के आई थी 
सत्ता के काल दूतों ने  
कालिख अपने चहरे पर पोती थी  
ना  उनको बूढ़ा नजर आया 
ना   दिखाई दिया बच्चा 
ना  महफूज रखी माँ, बहन की इज्जत 
मानवता को शर्मसार किया 
मानवता पर कलंक लगाने वालो 
तुमने क्या पाया ?
उत्तराखंड के  इतिहास में एक काला पन्ना जोड़ 
उन घरों को हमेशा के लिए दंश दे गए 
.... बलबीर राणा "भैजी"
अज्ञांत समय दिन १९९७

किस भाव से तुम्हें नमन करें?






साबरमती के शंत बापू 
नए युग का शुत्रपात करने वाले बापू 
अहिंसा का शास्त्र रचने वाले बापू  
संसार के दमित मन को जगाने वाले बापू  
आजादी का पाठ  पढ़ाने वाले बापू 
बशुधेव कुटम्बकम के भाव से 
जग को नईं दिशा देने वाले बापू 
बापू  !!!! आज …….
तेरा ही देश दिशा हीन हो चला। 
तेरे पद चिह्नों की
सरेआम खिल्ली उडाने चला 
जिस विदेशियों का दमन किया तुने 
फिर उसी के रहमोकरम पर चलने चला 
स्वदेशी छोड़ विदेशी अपनाने चला 
हे !!! अर्ध नग्न तपस्वी महान आत्मा
आज का  भारत ………
किस भाव से तुम्हें नमन करें? 
भारतीय ! जो इंडियन बन गया। 
तेरे विचारों को सपना समझ भूल गया। 

……….बलबीर राणा "भैजी"
०२ अक्तूबर २०१२