धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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शनिवार, 20 अक्टूबर 2012
तृप्त जीवन
नश्वर ही, तो है ये जीवन
क्यों भटकते हम मृग तृष्णा में,
तृष्णा जो जीवन भर बुझती नहीं।
तृष्णा !!!!!
मात्र लोभ लोभान्वित।
भटक रहा जग, सारा
खो रहा जीवन मूल्य,
मुठठी बांध के आये हैं,
मुठठी खोल के जायेगें।
यही सास्वत, सत्य
जिसे कोई कानून की किताब नहीं झुटला सकती।
ये भी, तो... कलयुग के देवदूत हैं
जो इस सत्य को जीत रहे।
उस परमबह्म के प्रेम में
तृप्त जीवन पा रहे।
………. बलबीर राणा "भैजी"
20 अटूबर 2012
शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012
हंसी
फूलों की बगिया के खिलते
फूलों की मोहकता है हंसी।
मुख के आभा मंडल की
अभिव्यक्ति है हंसी।
होंठ और आँखों की शोभा बन,
अनमोल औषधी है हंसी।
मन के दर्पण की स्वच्छता को प्रर्दषित करती है हंसी।
अनकहे शब्दों के चित्र को प्रतिबिम्बित करती है हंसी।
खुशी की अभिव्यंजना को उकेरते हुए,
आत्मिक सुख की अनुभूति है हंसी।
दर्द की पीडा कम करती हंसी।
मन्द मूकता में,
दो दिलों के मिलन का सेतु बन जाती हंसी।
अनचाहे दुखः के भय को
सुख में समाहित करती हंसी।
ना कह कर भी, बहुत कुछ
कह देती है हंसी।
बेवजह की बत्तीसी की चमक
उपहास का द्योतक बन,
पागलों की परिभाषा बन, जाती है हंसी।
हंसना जरूरी है जीवन में
ध्यान रहे कुटिल हंसी, ना हंसना भैजी
नहीं तो तेरी हंसी मेरी हंसी को रूला देगी।
………………बलबीर राणा “भैजी”
19 अक्टूबर 2012
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012
पर्वत की टीस
सहस्रों जुग
देखे मैंने
अजातशत्रु बन
अजर अमर
सदियों से जी
रहा हूँ।
काल के काल कलीकाल
बनते गये
कल्पों का
कोलाहल सुनके भी
मूक सहिष्णु
बना रहा।
ना टुटी तन्द्र
मेरी
ऐसा ही निशब्द
खडा रहा।
अथाह धैर्य शनेः
शनेः अनश्वर बनता रहा
धरा की अकुलाहट
देख भी
भावना की पाती
में ना बहा।
प्रकृति के
अकुलाहट में
मोन मेरा
पराजित ना हुआ।
कभी कभी जीवित अडिगता मेरी
चित को कटोचती
तुम क्यों
भ्रमित हो
पर्वत में भी
अचल दिल धडकता।
मानव की
विभित्सिका और अधम देख
प्रलय के आँसू
रोता।
मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012
माँ यही अराधना करूं
सुख शांति या सम्पन्ता
सुख तो विसंगितयों ने छीन लीया
शांति चक्काचौध में विलुप्त हो गयी
चलो सम्पन्ता का पाठ करूं
सम्पन्ता!!!!!
वो तो मंहगाई में घिसट रही
आज तेरे इस पावन पर्व पर
तेरे नौ रूपों का जाप कर
यही आकांक्षा करूं
रक्षा अपने वतन की करने में
अपने सच्चे कर्मों का र्निवहन कर
आदिशक्ति तुझ से यही अर्चना करूं
न भटके ऐसी राह पर कदम मेरे
उस राह से ये जीवन ना कलंकित करूं
अपने कर्म पथ पर अडिग हूँ
अडिग रहूँ
माँ यही अराधना करूं
…………बलबीर राणा भैजी
16 अक्टूबर 2012
सोमवार, 15 अक्टूबर 2012
शनिवार, 13 अक्टूबर 2012
प्रकृति का दर्पण
प्रकृति के दर्पण में
जब चेहरा जीवन का देखा।
देखा।सुखों का भंडार इस आँगन
में।
स्वच्छ निर्मल छटाओं में
प्रतिबिम्बित मन का कोना देखा।
क्षण में काफूर होती देखी
सारी कुंठाएं।
देखी !!!! सुगम और मनोरम
प्रेम पथ की डगर।
इस आईने के प्रतिबिम्ब मे
इसका उलटा भी,
उतना ही सत्य देखा।
भैजी ..... तु किस दृष्ठी से देखता
यह तेरी नजर और नजरिया है।
प्रकृति का यह दर्पण हमेशा
स्वच्छ और साफ रहता।
……………..बलबीर राणा "भैजी"
13 अक्टूबर 2012
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012
आज रो रही है माँ
आज रो रही है माँ
अपनों के लिए तरसती है माँ
नियति के क्रुर मजाक पर
बिरह की हँसी हँस रही है माँ
नो महिने कोख में सींचा जिसे
उसी के आक्रांत से
आज इस कोख को कोसती है माँ
आज रो रही है माँ
मातृत्व धर्म निभाया था माँ ने
इन पौधों को हाथों हाथ उगाया था माँ ने
स्तनों से प्रेमपान कराया था माँ ने
सुन्दर कल की चाह में
निराया गुडाया था माँ ने
आज इसी कल से व्यथित है माँ
आज रो रही है माँ
प्रीत आज प्रतिकार हो गयी
अपनो से ही धिक्कार दी गयी
जिस दुखः बिपदा ले के जीवन से लडी थी
आज फिर उस बिपदा की ललकार सुन रही है माँ
अपनो के लिए आँशुं बहा रही है माँ
आज रो रही है माँ
अपने मन को मार कर
अपने तन को काट कर
खुद रूखा सुखा खा कर
बेटे को तला रस खिला कर
ममता की छांव में संवारती रही
आज उसी ममता के दग्ध से दग्धित है माँ
आज रो रही है माँ
……….बलबीर राणा "भैजी"
०२ अक्तूबर २०१२
मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012
२ अक्टूबर की काली रात
२ अक्टूबर की वो काली रात
उत्तराखंडीयों के लिए
काल बन के आई थी
सत्ता के काल दूतों ने
कालिख अपने चहरे पर पोती थी
ना उनको बूढ़ा नजर आया
ना दिखाई दिया बच्चा
ना महफूज रखी माँ, बहन की इज्जत
मानवता को शर्मसार किया
मानवता पर कलंक लगाने वालो
तुमने क्या पाया ?
उत्तराखंड के इतिहास में एक काला पन्ना जोड़
उन घरों को हमेशा के लिए दंश दे गए
.... बलबीर राणा "भैजी"
अज्ञांत समय दिन १९९७
किस भाव से तुम्हें नमन करें?
साबरमती के शंत बापू
नए युग का शुत्रपात करने वाले बापू
अहिंसा का शास्त्र रचने वाले बापू
संसार के दमित मन को जगाने वाले बापू
आजादी का पाठ पढ़ाने वाले बापू
बशुधेव कुटम्बकम के भाव से
जग को नईं दिशा देने वाले बापू
बापू !!!! आज …….
तेरा ही देश दिशा हीन हो चला।
तेरे पद चिह्नों की
सरेआम खिल्ली उडाने चला ।
जिस विदेशियों का दमन किया तुने
फिर उसी के रहमोकरम पर चलने चला ।
स्वदेशी छोड़ विदेशी अपनाने चला ।
हे !!! अर्ध नग्न तपस्वी महान आत्मा
आज का भारत ………
किस भाव से तुम्हें नमन करें?
भारतीय ! जो इंडियन
बन गया।
तेरे विचारों को सपना समझ भूल गया।
……….बलबीर राणा "भैजी"
०२ अक्तूबर २०१२