फूलों की बगिया के खिलते
फूलों की मोहकता है हंसी।
मुख के आभा मंडल की
अभिव्यक्ति है हंसी।
होंठ और आँखों की शोभा बन,
अनमोल औषधी है हंसी।
मन के दर्पण की स्वच्छता को प्रर्दषित करती है हंसी।
अनकहे शब्दों के चित्र को प्रतिबिम्बित करती है हंसी।
खुशी की अभिव्यंजना को उकेरते हुए,
आत्मिक सुख की अनुभूति है हंसी।
दर्द की पीडा कम करती हंसी।
मन्द मूकता में,
दो दिलों के मिलन का सेतु बन जाती हंसी।
अनचाहे दुखः के भय को
सुख में समाहित करती हंसी।
ना कह कर भी, बहुत कुछ
कह देती है हंसी।
बेवजह की बत्तीसी की चमक
उपहास का द्योतक बन,
पागलों की परिभाषा बन, जाती है हंसी।
हंसना जरूरी है जीवन में
ध्यान रहे कुटिल हंसी, ना हंसना भैजी
नहीं तो तेरी हंसी मेरी हंसी को रूला देगी।
………………बलबीर राणा “भैजी”
19 अक्टूबर 2012
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