काष्ठ कर्मों से वीर विचलित नहीं होते,
लाख झंझावतों में वे धीरज नहीं खोते,
विघ्न वाधाओं को मिशन मूड़ रखकर,
शौर्य गंतव्य पर सदैव गतिमान रहते ।
शूल भरी राहों से तनिक ना घबराते,
पग छालों में भी आह नहीं निकालते,
संकट में शोंणित और वेगवान रहता,
अपनी विजय पर कभी नहीं इतराते ।
इस जग में वो कौन सी बाधा है,
जिसको वीरों ने नहीं साधा है,
बिपत्ति मूल को मिटाने का उनमें,
मनसा वाचा कर्मणा से मादा है।
खड़े गिरी के पाँव उखड़ जाते हैं,
शूरों के कदम जहाँ बड़ जाते हैं,
प्रस्तर भी पानी बन जाता है तब,
जब वे आन बान शान से ठान जाते हैं ।