मन से अर्पण दिल से समर्पण
एक ही सीरत सूरत का दर्पण
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन
समझ की पटरी सामर्थ्य की गाड़ी
चलेंगे संग संग, न अगाड़ी पिछाड़ी
हंसते गाते पथ पूरा करेंगे
प्रेम गंतव्य पर चला करेंगे
तज देंगे उस दुनियां को
जहाँ होता हो भावनाओं का मर्दन
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन
जब चुभे जो कंटक तेरे पग में
तब दर्द उभरे मेरे पगों में
कारा चुभे जब आँखों में मेरी
अश्क बहे तब नैनों से तेरी
प्रीत रश्मि से अंतस उजियारा हो
हो तपिस उच्छवासों का समर्थन
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन
लिखेंगे परिणय का हर एक पन्ना
अधूरी न रहे कामायनी तमन्ना
सींचेंगे गृहस्थ की, कुसुम क्यारी
बनकर मैं घन, तु पावस न्यारी
जीवन गोधूलि बेला तक
प्रेम वन्धन की संभाल संवर्धन
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन ।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'