ओ चिन्मय प्रकृति
अपने बहकावे में ले ले
ताकि अकेले दौड़ता रहूँ
कभी खुद से ही आगे
कभी खुद से ही पीछे
स्वयं से प्रथम और अंतिम
अकेला जीतूँगा
अकेले से ही हारूँगा
ना कोई प्रतिस्पर्धा
नहीं किसी का प्रतिरोध
प्रतिभागी, प्रतियोगी होने का
भय संशय कुछ नहीं
जय विजय का द्वंद नहीं
चेतना में एक नाद निकले
अनहद गरजै और
जीवन तेरे चिन्मय के साथ
चिरकाल वासी हो जाय
लेकिन क्या मेरे अंतर्द्वंद यह
सम्भव है?
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
2 टिप्पणियां:
खुद से किये प्रश्नों का जवाब खुद ही मिल जाता है ... प्राकृति रच देती है जवाब ...
सही कहा आदरणीयवर इस प्रकृति में रहते हुए प्रवृतिजन्य द्वन्द का जबाब प्रकृति के ही पास होता है आपकी उत्कृष्ट टिप्पणी का तहे दिल आभार
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