सोमवार, 21 जनवरी 2019

वह अहसास


वह अहसास आज भी सुकून देता है
और मैं लौट जाता हूँ अपने बचपन में
अपने सीढ़ीनुमा खेतों की मुंडेरों पर
फाल मारने और उस सौंधी सुगंध वाली
मिट्टी में लतपत होने ।

वह अहसास लौटा देती है मुझे
मेरी ब्वै की कुछली
जिसमें मैं दुबक जाता था
पड़ोस के दीनू से छेड़खानी करने के बाद।

और वह अहसास लौटा देता है मुझे
मेरे गांव की गलियों में, चौक/खौलों में
जहां गुच्छी और गुली डंड़ा
गोधुली तक चलता रहता
जब तक माँ आवाज नहीं देती
आजा घर तेरी खैर नहीं।

फाल = कूदना, ब्वै = माँ, कुछली = माँ की गोदी

@ बलबीर राणा 'अड़िग'