रविवार, 22 मार्च 2020

जनता कर्फ्यू निभाना है



जनता कर्फ्यू निभाना है
अपनों के साथ कुछ पल नहीं
कुछ दिन पे दिन गुजारना है
दानव कोरोना भगाना है।

अब तक हाथ से हाथ मिलाकर
बाधाओं को पार करना जाना है
अब हाथ जोड़ दूर रहकर
इस बाधा को पार लगाना है
संघे शक्ति कलयुगे की ताकत
इस अदृश्य दानव को दिखाना है
दानव कोरोना भगाना है 
आगे भी जनता कर्फ्यू निभाना है।

छाती तान गुथम गुथे से
जैविक युद्ध नहीं जीता जाता
तोप बमों से इस शक्ति को
हराया नहीं जाता
अकड़ नहीं बुद्धि विवेक से
एक दरम्यानी फासला बनाना है
भारत को कोरोना मुक्त बनाना है
जनता कर्फ्यू निभाना है ।

बहुत किये हैं धरना उपवास
बाहर चौराहों में बैठकर
कभी भटके कभी संगठित हुए
सभा सेमिनारों में डटकर
कुछ दिन घर में रहकर
धैर्य संयम अपना आजमाना है
दानव कोरोना को भगाना है।
जनता कर्फ्यू निभाना है।

बहुत हो ली तेरी मेरी
कुछ दिन हम बनके दिखाते है
भय नहीं जागरूक रहकर
इसे ताकत अपनी बताते हैं
सोशियल डिस्टेंस की अहमियत
समझना और समझाना है
दानव करोना को भगाना है
आगे भी जनता कर्फ्यू निभाना है।

ढूंढें आलमारी बक्सों में
कुछ पुरानी प्रेम कहानियाँ
टटोलो किताबों के पन्नो मैं
दादा दादी ने जो सुनायी जुबानियाँ
कुदरत के दिये इस समय को
कल की यादों के लिए सहेजना है
दानव कोरोना को भगाना यहै।
जनता कर्फ्यू को निभाना है।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

कली तक का जीवन सफर


बड़ा पेड़ बनने की
न कभी इच्छा हुई
न ही कल्पना की
क्योंकि मुझे पता है
मेरा जीवन सफर
कली तक का ही है
जितनी जल्दी कली बनती हूँ
उतनी जल्दी तोड़ी जाती हूँ
किसलय पत्तीयों के साथ
मशीनों में मरोड़ी जाती हूँ
बना दी जाती हूँ
एक काला दाना
फिर उबलते पानी के साथ
देती हूँ कुछ रंग कुछ स्वाद
प्यालियाँ भरकर।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

रविवार, 8 मार्च 2020

नारी किरदार



हर नजर और नजरिये ने 
अपने खातिर किरदार पढ़े
अपनी परिभाषा गढ़ी
माँ, बहन, बहू, बेटी
हमसफर/ दोस्त/ साथी
सहचरी/ सहभागनी
अर्धांगनी/बामांगनी
प्रिया  त्रिया इत्यादि।

लेकिन मैंने देखा
इन किरदारों के मंचन में
विभन्न भाव, वेशभूषा
नाना कलाओं और
मुद्राओं से जो मूर्ति बनी है
वह धरती की है
जननी की है ।

जो अचल/अड़िग है
जिसमें धीर-थीर धैर्य है
जिससे जीवन उर्जित है
उसमें संजीदगी है गंभीरता है
वेदना समन की शक्ति है

उस परिपूर्ण सजल मूर्ति में
प्रेम है माया मोह है ममता है
किसलय इतनी कि
तनिक पर दुःख पर
विह्वलता, करुणा और
दया धर्म पसीजता है।

उसमें नूर है आकर्षण है
निश्च्छलता है निर्मलता है
सौम्यता है सम्मोहन है
वह वाकपटु विदुषी है।

दानवी समन के लिए
रणचण्डी ज्वाला है
तेज तलवार कटार धारी है
गोली का वेग उसमें
जेट विमान सी गति उसमें
जल थल नभ पूरे ब्रह्मांड को
विजित करने का सामर्थ्य है
अनन्य शस्त्रधारी शक्तिवान
प्रबल बल की स्वामिनी है

वह कोयल कोकिला है
वीणा वादिनी है
सुर संगीत साम्राज्ञी है
कलित कलाओं में
निपुण योगनी है
साहित्य संस्कृति सूक्ति है
छंदबंध भी है
वंधन मुक्त मुक्तक भी है
और सबसे बढ़कर
सुत का सम्पूर्ण जीवन ग्रंथ है

वह ज्ञान ज्योति है
तिमिर में प्रकाश पुंज है
जीवन के हर कर्म में
प्रखर प्रवीण है, दक्ष है ।

यह प्रतिमा है
त्याग की अर्पण की
अथाह सबल समर्पण की।

सर्व गुणों से सज्जित
सुंदर जो ये कुट्यारी है
वह मातृशक्ति नारी है
वह मातृशक्ति नारी है।

कुट्यारी - गठरी

@ बलबीर राणा 'अड़िग'
8 मार्च 2020

मंगलवार, 3 मार्च 2020

थाह


जगत पथ की पगडंडियों पर
जीवन चलता है बढ़ता है
असीम थाह की चाह में मनुज
अथाह अनायास भागता है

असीम थाह मिलती नहीं
जीवन में इसका ठौर नहीं
कर्म प्रधान है जीवन तो
कर्म सिवा किुछ और नहीं

जब तक पथ शेष है जीवन का
विश्राम नहीं आराम नहीं
अकर्म विकर्मो के राहों पर
ईश्वर नहीं राम नहीं ।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'