मन से अर्पण दिल से समर्पण
एक ही सीरत सूरत का दर्पण
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन
समझ की पटरी सामर्थ्य की गाड़ी
चलेंगे संग संग, न अगाड़ी पिछाड़ी
हंसते गाते पथ पूरा करेंगे
प्रेम गंतव्य पर चला करेंगे
तज देंगे उस दुनियां को
जहाँ होता हो भावनाओं का मर्दन
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन
जब चुभे जो कंटक तेरे पग में
तब दर्द उभरे मेरे पगों में
कारा चुभे जब आँखों में मेरी
अश्क बहे तब नैनों से तेरी
प्रीत रश्मि से अंतस उजियारा हो
हो तपिस उच्छवासों का समर्थन
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन
लिखेंगे परिणय का हर एक पन्ना
अधूरी न रहे कामायनी तमन्ना
सींचेंगे गृहस्थ की, कुसुम क्यारी
बनकर मैं घन, तु पावस न्यारी
जीवन गोधूलि बेला तक
प्रेम वन्धन की संभाल संवर्धन
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन ।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
7 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (३०-११ -२०१९ ) को "ये घड़ी रुकी रहे" (चर्चा अंक ३५३५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आदरणिया अनीता सैनी जी , यशोधा अग्रवाल जी। आप लोगों का कृतज्ञ हूँ जो मेरी टूटी फूटी लेखनी को अपने मंचों पर संम्मान देते रहते हो
वाह
अनिता सुधीर जी हार्दिक आभार जी
बहुत सुंदर गीत /कविता |हार्दिक आभार भाई साहब
धन्यवाद सर जी आभार
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