नश्वर ही, तो है ये जीवन
क्यों भटकते हम मृग तृष्णा में,
तृष्णा जो जीवन भर बुझती नहीं।
तृष्णा !!!!!
मात्र लोभ लोभान्वित।
भटक रहा जग, सारा
खो रहा जीवन मूल्य,
मुठठी बांध के आये हैं,
मुठठी खोल के जायेगें।
यही सास्वत, सत्य
जिसे कोई कानून की किताब नहीं झुटला सकती।
ये भी, तो... कलयुग के देवदूत हैं
जो इस सत्य को जीत रहे।
उस परमबह्म के प्रेम में
तृप्त जीवन पा रहे।
………. बलबीर राणा "भैजी"
20 अटूबर 2012
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