प्रकृति के दर्पण में
जब चेहरा जीवन का देखा।
देखा।सुखों का भंडार इस आँगन
में।
स्वच्छ निर्मल छटाओं में
प्रतिबिम्बित मन का कोना देखा।
क्षण में काफूर होती देखी
सारी कुंठाएं।
देखी !!!! सुगम और मनोरम
प्रेम पथ की डगर।
इस आईने के प्रतिबिम्ब मे
इसका उलटा भी,
उतना ही सत्य देखा।
भैजी ..... तु किस दृष्ठी से देखता
यह तेरी नजर और नजरिया है।
प्रकृति का यह दर्पण हमेशा
स्वच्छ और साफ रहता।
……………..बलबीर राणा "भैजी"
13 अक्टूबर 2012
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