कैसा रंग घोला प्रभु तेरी
प्रीत ने
कुपथ में भटक गया था ,खोये दिन पा लिए मैंने
ऊसर मन में आशाओं की हरियाली
उगी,
टूटे दिल में जीने की आश
जगी।
भा गयी प्रभु
अब तेरे प्यार के नीर की
शीतलता,
न रही दुःख की तपन,
न रही जीवन से निराशा,
तर हो गया जीवन बुझ गयी
पिपासा।
रम गया प्रभु
अब ये तन, तेरे प्रेम के
भस्म से
जोगी से बन गया तेरे प्रेम
का रोगी,
राम हरे राम नाम का बन गया
भोगी।
बशंत आ गया प्रभु जीवन में,
अब हर रोज गुलाल उड़ते आँगन
में,
भावनाओं में सुख की दीप
जलते,
हर घडी सुहावना सबेरा रहता
घर में ।
गीतकार -: बलबीर राणा “भैजी”
२४ मार्च २०१३
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