सुखमय जग की अर्ज लेकर,
तेरे द्वारे खड़ा हूँ मुरारी
देख व्यभिचार भू लोक के,
क्यों मूक जड़ा त्रिपुरारी
देख तेरी धरती का क्या हाल हुआ है,
भाई - भाई का चक्रव्यूह रचाया हुआ है,
फिर वही कौरव राज की निठुरता
अब किस अभिमन्यु से व्यूह भेद्वाओं भगवन
सुखमय जग की अर्ज लेकर........
तन उजले और मन मैले सबके ,
जिसके देखो दो रूपी दो भेष धरे हैं
अधर्म नीति से नियति बदली,
धर्म की नीति कुंठित होवे,
अब तेरा गीता ज्ञान किसे सुनाऊ मधुसुदन
सुखमय जग की अर्ज लेकर...............
तूने ही दुष्टों का संहार किया
था,
धरती पर धर्म विराज किया था,
अधर्म के दैंतियों नाश करके
मनुष्यों को नीति का पाठ पढाया
आज फिर जग को तार जा भगवन,
सुखमय जग की अर्ज लेकर.......
२६ मई २०१३
भजन -: बलबीर राणा “ भैजी”
© सर्वाध
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