समय का पहिया घुमता गया
ना जाने एक पखवाडा जीवन का गुजर गया
सेंतीसवी शिशुर की ठिठुरन गठरी में छोड आया
अडतीसवें बसन्त की बयारों में पग बडाया
तमन्नाओं के फूल अभी कलियों में ही बन्द हैं
कब खिलेंगे ये आने वालें बसन्तों के गर्भ में है
जीजीवि षा की कल्पनाओं का
कर्म के पहाडों पर चडना जारी है
मंजिल का शिखर तो दूर है
पर मन ने
सन्तोष की बगिया संवारी है
25 फरवरी 2013 खुद के जन्मदिन पर
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