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रविवार, 26 मई 2013

38 वें बसन्त का आगमन



समय का पहिया घुमता गया
ना जाने एक पखवाडा जीवन का गुजर गया

सेंतीसवी शिशुर की ठिठुरन गठरी में छोड आया
अडतीसवें बसन्त की बयारों में पग बडाया

तमन्नाओं के फूल अभी कलियों में ही बन्द हैं
कब खिलेंगे ये आने वालें बसन्तों के गर्भ में है

जीजीवि षा की कल्पनाओं का
कर्म के पहाडों पर चडना जारी है
मंजिल का शिखर तो दूर है
पर मन ने
सन्तोष की बगिया संवारी है  

25 फरवरी 2013 खुद के जन्मदिन पर


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