धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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रविवार, 26 मई 2013
हर्षित प्रसंचित धरा की विह्ंगमता देख मन उमंगित पर !!!! कौतुक बरकरार क्यों ? नहीं हमारे मन इस धरती की तरह मनोरम और निर्मल होते…
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