आज के बदलते परिवेष में
क्या घर क्या देश में
मनवता लहरों संग बह रही
अमानुष्ता हवा संग घर-घर घुल रही
हर कोई बाहर से सफेद पोष है
झूटी शान में नजर आशमान की ओर है
धरातली हकीकत कौन जाने
अन्दर से खोखले ढोर से ज्यादा कुछ ना रहे
इस बदलाव के फेर में
आधुनिकता के भेष में
भागम भाग जिन्दगी में समय का टोटा हो गया
कोटिस परमार्थ से मिला मनुश्य जीवन
परदे पर चलते चलचित्र बन के रह गया
सडक से संसद तक
हंगामा ही हंगामा है
मोहल्ले क्या राज सत्ता के गलियारों तक
अपने ही हित का तराना है
नीतिया अरोप प्रत्यारोप के नीचे दब के रह
गयी
योजनायें आंकडों में फिट है
लोकार्पण कर अधिकारी मिडीया में हिट हैं
जन तन्त्र में मन तन्त्र का राज है
जिसके पास कुर्सी है उसी के ठाट है
समाज कल्याण होर्डिगों मे विज्ञापन बनके
टंगी रह गयी
14 फरवरी २०१३
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें