मैली ह्वेगे अकल रे जमाना
गंदुलू ह्वेगे हमारू समाज
नंगा ह्वेगयाँ मनखी
नि रय्यीं लाज शर्म रे जमाना
मखियत पर घुण लगिगे
भैचारा पर सेंटूलों कु किब्चाट मचियों च
नाता रिश्तों मा औपचारिकता मलहम लग्यों च
नि रेगे पीड़ा अप्डों की
अफुं तक सिमित ह्वेगे रे जमाना
मैली ह्वेगे अकल रे जमाना
घोर बार छोड़ी शहरों मा भाजण लाग्यां
एक कमरा मा दिन काटण लाग्यां
रोजगार त जनि होलू
लोगों की नजर मा परदेशी ह्वयाँ
कनि सूनी छोडीगे खोली तिवारी रे जमाना
मैली ह्वेगे अकल रे जमाना
ब्वे बाब, दाना बुडीयों कु कण तिरिस्कार
हुनु च
अपणा रीती रिवाज को कण मजाक हुनु च
अपनी भाषा बोली बुन मा शर्म ओंदी
बीराणा संस्कृति नचे मार्डन बनिगे रे
जमाना
मैली ह्वेगे अकल रे जमाना
१० अप्रेल २०१३
गीतकार - : बलबीर रणा “भैजी”
© सर्वाध
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