सोमवार, 27 मई 2013

मैली ह्वेगे अकल रे जमाना



मैली ह्वेगे अकल रे जमाना

गंदुलू ह्वेगे हमारू समाज

नंगा ह्वेगयाँ मनखी

नि रय्यीं लाज शर्म रे जमाना



मखियत पर घुण लगिगे

भैचारा पर सेंटूलों कु किब्चाट मचियों च

नाता रिश्तों मा औपचारिकता मलहम लग्यों च

नि रेगे पीड़ा अप्डों की

अफुं तक सिमित ह्वेगे रे जमाना

मैली ह्वेगे अकल रे जमाना



घोर बार छोड़ी शहरों मा भाजण लाग्यां

एक कमरा मा दिन काटण लाग्यां

रोजगार त जनि होलू

लोगों की नजर मा परदेशी ह्वयाँ

कनि सूनी छोडीगे खोली तिवारी रे जमाना

मैली ह्वेगे अकल रे जमाना



ब्वे बाब, दाना बुडीयों कु कण तिरिस्कार हुनु च

अपणा रीती रिवाज को कण मजाक हुनु च

अपनी भाषा बोली बुन मा शर्म ओंदी

बीराणा संस्कृति नचे मार्डन बनिगे रे जमाना    

मैली ह्वेगे अकल रे जमाना



१० अप्रेल २०१३

गीतकार - : बलबीर रणा “भैजी”

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