एक बीती हुयी एक कहानी थी
जो आती सबकी जुबानी थी,
दुनियां में भारत की
महकती रूबानी थी।
सत युग के सती मानव,
द्वापर के शूर पराक्रमी थे,
त्रेता के राम राज्य में
एक ही सरोवर, शेर हिरन
पानी पीते थे
।
जग उद्दार शिक्षा
आर्यो के इस देश में विद्यमान थी,
चारवेद, पंचपुराणों ने
दुनियां को जीवन दृश्टी दी थी ।
कलयुग के कलि काल में भी
सत्याग्रह की शीत ज्वाला यहाँ बही थी,
सतोपन्थ के सत मार्गीयों ने
फिरंगी सम्रासुरों के माथे,
अहिंसा की लाठी चलायी थी
।
फिर सोने की चिडिया बनाने का
सपना महा मानवों ने यहाँ देखा था,
मानवता की ज्योति फिर पूरे बिश्व
में बिखेरने का मनसूबा रखा था,
उनको क्या पता था?
कुमानवों का
जलजला आज यहाँ आयेगा,
देश के उन सपूतों के मनसूबों पर
पानी फिर जायेगा
।
आज नेता इस देश के,
कटाक्ष की राजनीति से
जनता को बरगलाते हैं,
जनहित का पांसा खेल
बोट बैंक बनाते हैं,
कुर्सी पर बिराजने पर
इमान अपना भूल जाते हैं
।
बारूदों के ढेर में आम जन सो रहा
घातकियों का प्रहार चहुँ ओर हो रहा,
छदम युद्ध से पडोसी मुल्क,
देश की अखंडता को भंग कर रहा,
कायर नेता उन को भाई कह कर पुकार रहा
।
भ्रश्टाचार और आंतक ये,
आज का युद्ध कब तक चलता रहेगा?
अर्जुन भगत सिहं की ये देश
पीठ पर वार कब तक सहता रहेगा ।
09 फरवरी 2013
बलबीर राणा “भैजी”
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